सन्त कवि आचार्य श्री विद्यासागर की साहित्य साधना | Sant Kavi Acharya Shree Vidhyasagar Ki Sahitya Sadhna

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Book Image : सन्त कवि आचार्य श्री विद्यासागर की साहित्य साधना  - Sant Kavi Acharya Shree Vidhyasagar Ki Sahitya Sadhna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হায়াতের मेँ बालक विद्याधर का अवतरण एक पुण्यात्मा का अवतरण था, जिसने सम्पूर्ण भारतवर्ष विशेषकर उत्तरभारत में अपने तप, त्याग, साधना, संयम ओर चर्या के द्वारा एक एेसी पहचान कायम की जिसे सदियाँ नहीं भुला पायेंगी। श्रमण संस्कृति का ऐसा संवाहक जो जन-जन का प्रिय हो गया। जो सबका स्वामी हो गया जिसके आशीष के लिए मानव सर्वस्व तक न्‍्यौछावर करने के लिए आकुल रहता हो आस्था का ऐसा परिपुष्ट केन्द्र एक लम्बे अंतराल कं पश्चात्‌ इस धरित्री को मिला है जिसे इतिहास कभी विस्मृत नहीं कर सकगा। क वातावरण £ मलप्पा जी का परिवार अत्यंत सरल, सुशील ओर धार्मिक, प्रकृति का था। अनुशासन, नियम, व्रत, सदाचरण ओर नितप्रति देवदर्शन इस परिवार कौ अनिवार्यताएं बन गई थीं। शोधकर शाकाहारी भोजन को ग्रहण करना नित्य नियम के अंतर्गत आता था। बालक विद्याधर कं जन्मोपरात अचानक एक दिन नकी माँ का स्वास्थ्य खराब हो गया। संयोग से उस दिन चतुर्दशी थी। वे चतुर्दशी का त्रत किया करती थी। अस्वथ्यता के कारण मलप्पा जी नै उन्हे व्रत करने के लिए मना किया लेकिन उन्होने उनके आग्रह को विनम्रता पूर्वक यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि--*“ यह संसार नश्वर है, शरीर नाशवान है ऐसी स्थिति में नाशवान ओर नश्वर के लिए आसक्ति किस बात कौ, धर्म ओर कर्तव्य के क्षेत्र मेँ इन चीजों को बाधक नहीं बनाना चाहिए। जिन विद्याधर की माँ इतनी धार्मिक, दुढ्‌, संकल्पवान ओर कर्तव्यपरायण हो उनका पुत्र किन संस्कारों को लेकर जन्मा होगा सहज ही विचार किया जा सकता है। ठीक इसी तरह से पिता मालप्या जी भी अत्यंत धार्मिक, सरल स्वाभावी, मृदुभाषी ओर परोपकारी व्यक्ति थे। समाज मेँ उन्हें सन्जन ओर सद्पुरुष के रूप मेँ जाना जाता था। वे यद्यपि दस सन्तानो के पिता थे लेकिन दुर्योग से चार संताने असमय ही इस नश्वर संसार से विदा ले चुकी थीं। शेष छःह संतानों में चार पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। ज्येष्ठ पुत्र का नाम श्री महावीर प्रसाद जी है जो आज भी ग्राम सदलगा के निकट शमनेबाडी ग्राम मे अपने परिवार के साथ ससम्मान धार्मिकता पूर्वक जीवन यापन कर रहे है! आचार्य विद्यासागर इन्हीं के अनुज थे। विद्याधर की दो बहिन शान्ता ओर सुवर्णा तथा दो भाई अनन्तनाथ ओर शातिनाथ উঁ। पर पुरा परिवार धर्ममय है। महावीर प्रसाद जी ग्रहस्थ होते हुए भी सन्यासियों कौ तरह रहते हेँ। शेष भाई बहिन धर्मं के पथ पर अग्रसर होकर इस देश के जन जन तक माँ जिनवाणी का प्रसाद्‌ नाना रूपों मं वितरित कर रहे हैं। साधना के बहुआयामी रूपों में। मलप्पा जी साहूकार कहलाते थे। उनके पास बीस एकड़ भूमि पर कृषि कार्य होता था। मुख्य रूप से कृषि भूमि पर गन्ना, मूंगफली और तम्बाखू की खेती की जाती थी। व्यापार कार्य भी हुआ करता था। साहूकारी का कार्य प्रमुख होने के बावजूद भी मजबूर ओर निराभ्रितों को निर्व्याज पैसा भी




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