जीव और कर्मविचार | Jeev Aur Karmvichar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीव भौर कम.बिचार । [ १५ ~~ ~ ~ ~ ------------------------ --------------~---“----. कर्मोपाधि दूर होने पर शुद्ध जोवही शुद्ध होकर पूणं कानी निराकुछ-परमशाल्त-परमआनंद मय ओर पूर्ण खतंत्र-कतकृत्य दो जाते दें । कर्मोपाथिस नवीन नवीन कर्मबंधका अंकुर उत्पन्न होता दो रहता है। कर्मोपाधि दूर होआाने पर नवीन कर्मोक्रे अंकुरकी उत्पत्ति नष्ट हो जाती है। जिख प्रकार चावलके धानन्‍्य परसे कर्मोग्राधि रूप छिलका दूर कर देने पर चावलमें अंकुरोत्यत्ति नष्ट हो जाती है | छिलका खहित घान्य निरन्तर अंकुरित होतादी है + शरीरके दृटः जानेसे कर्मो गपि नहीं चृटती ह, यद सथू शरीर अनंतवार छोडा । परन्तु कर्मोसो स्ता आत्मा पर पूर्ण हानेसे संसारके जन्म-मरणका भंत नहीं होता है। कर्मोंकी प्रवछतासे एक शारोर छूटने पर दूसरा शरीर घारण करना पड़ता है। दूखरा छूटने पर तीसरा, तीखरा छूटने पर चौथा शरीर धारण करना पडता रै, श्ख प्रकार जबतक कर्मोंका आत्माके साथ संबंध दे तबतक निरंतर पक शरीरकों छोड़ना আহ তং লন্বাল शरीरको चारण करना यह व्यापार अशुद्ध जीवके साथ निरंतर लगा दी है। इस्रीको संतति कहते हैं, जन्म-मरणका चक्र कद्दते है, संखार कहते है । शुद्धजीवमें कर्मोंका संबंध सर्वेथा नष्ट हो गया है इसलिये जन्म-मरणका चक्र स्वेधा नश्ट हो गया दें । शुद्ध जोब जन्म-मरण की उपाधिसे.सर्वंया रहित है । पक शरीर छूटने पर दूसरे शरीरकों धारण करनेके; लिये




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