हिंदी गद्य गरिमा | Hindi Gadhya Garima

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Hindi Gadhya Garima by रणधीर उपाध्याय - Randhir Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बौद्धकालीन भारत के विश्वविद्यालय आचाये महावीरप्रसाद द्विवेदी | हिन्दी-गद्य-लेखकों में आचायं महावीरप्रसाद द्विवेदी का स्थान सर्वोपरि हूैं। ये गद्य-लेखकों के 'आचाय' माने जाते हें। हिन्दी के लिए द्वेदीजी न वहीं काय किया, जो अंग्रेज़ी के लिए डॉ० जानसन ने किया था ।. आपके पहल जितन हिन्दी-गद्य-लेखक हुए है, उन सबकी रचनाओं में भाषा-दोष एवम्‌ व्याकरण सम्बन्धी भूलें पाई जाती हें । ट्वेदीजी ने भाषा को परिष्कृत और परिमजिंत किया, लेखन-देली को स्थिरता प्रदान की और व्याकरण के नियमों को पूर्णतः प्रतिष्ठा की ।. आपने अपनी पत्रिका “सरस्वती” द्वारा . अनेक युवकों को प्ररणा और प्रोत्साहन देकर लेखक बनाया । अंग्रेज़ी की ओर भके हुए लोगों को हिन्दी की ओर खींचा । इस प्रकार आपने हिन्दी का परम उपकारी 'काय किया । द्विवेदीजी संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेज़ी के तो प्रकांड पंडित थे ही ।. इसके अतिरिक्त विभिन्न भारतीय भाषाओं के भी ज्ञाता थे । आपने निबन्ध, 1लोचना, कविता आदि विविध प्रकार की रचनाएँ की हें। संस्कृत और अंग्रेजी के कुछ ग्रंथों के सफल अनुवाद भी किये हे। पुरातत्व, विज्ञान राजनीति आदि विषयों पर हमें आपके लेख उपलब्ध होते हूं। आपको भाषा संयत और सप्रमाण हैं। आपमें दाब्द-चयन की निपुणता और निरूपण की सुस्पष्टता अद्भुत थी । प्रमख रचनाएं :-- विचार-विमर्श, रसज्ञ-रंजन, साहित्य-सीकर, सुकवि-संकीतन, कविता- कलाप, बेकन-विचार-रत्नावली आदि ।] न) हल तीन युगों में बाँदा जा सकता हूं। पहला युग गौतम बुद्ध के समय से शुरू होता हूं और पाँच सौ वर्ष तक रहता हूं । इस युग बौद्ध साधुचरित्र और सच्चे त्यागी होते थे। दूसरा युग ईसवी सन्‌ साथ प्रारम्भ होता हे और ईसा की छठी शताब्दी में समाप्त हो जाता । इस युग में बौद्धों ने पहले युग के गुण अक्षुण्ण रखन के साथ-साथ /तवि& न रु




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