लोक विधा | Lokvidha

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Lokvidha by अजय शेखर - Ajay Shekhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लोक सगीत आल्हा भोजपुरी भाषी क्षेत्र के अन्तगत आल्हा-गायन पहल बहुत ही प्रचलित था। यद्यपि समय के साथ-साथ इस षेत्र मे आल्हा-गायन मे कमी आई ह फिर भी आल्हा-गान का ्वर कभी-कभी मुखरित हो उठता ह| अनेक विद्वानो की राय मे परमाल रासो ही आल्ह खण्ड हे । आचार्य प्रवर पण्डित रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक हिन्दी साहित्य का इतिहास मे परमाल रासो की चर्चा कीदहे किन्तु परमाल रासो उपलब्ध नही हे। विद्धानो कामत ह कि कलिजर के चन्देल राजा परिमर्द देव सन ११७३ जिन्हे परमाल भी कहा जाता हे के दरबारी कवि जगनिक ने आल्ह खण्ड की रचना की हे। आल्ह खण्ड की रचनाएँ लोक कण्ठ मे जाकर आल्हा कं रूप मे प्रचलित हई । आल्हा गायको के गायन मे भिन्नता मिलती ह| आल्हा-गायको द्वारा गाये जाने वाली आल्हा की रचनाओं के अनुसार देवला ओर तिलका कलिजर के राजा परमाल की पत्नी मल्हना की सगी बहने शी | देवला ओर तिलका का विवाह दो सगे भाइयो जासर ओर सोढर से हुआ था तथा मल्हना स ब्रह्मा देवला से आल्हा ओर ऊदल तथा तिलका से मलखान एव सुलखान का जन्म हुआ था। लोक गाथा आल्ह खण्ड मे बावन किलो के युद्धो का वर्णन है। आल्ह खण्ड का नायक आल्हा हं | आल्ह खण्ड मे आल्हा ओर ऊदल की शोय गाथा हे | आल्ह खण्ड का वणन जिन छन्दो मे किया गया हे उन छन्दो का नाम भी आल्हा पडा। यह आल्हा की लोकप्रियता का सवस बडा प्रमाण हे} आल्हा गायन मे इतनी अधिक भिन्नता हे कि प्रत्येक गायक अलग-अलग ठग से आल्हा का वर्णन करता ह| पर आल्हा ओर ऊदल के रणकोशल का वर्णन सभी करतं हे | आल्हा-लोक-गायन मे आल्हा आदर्श नायक परम देवी भक्त तथा परमवीर और अमर है | आल्हा वीररस से ओतप्रोत गाथा हे। आल्हा गायक जब तन्यमयता के साथ आल्हा गायन करते ह तो श्रोताओं के रग-रग मे ओज का सचार होने लगता हे - आल्हा की कुछ पक्तिया प्रस्तुत है - बारह बरिस लो कुकूर जीये और तेरह लौ जिए सियार बरिस अटटारह क्षत्रिय जीये आगे जीवन को धिक्कार ৯ भ्‌ স্‌ नवमन तेगा नव मण्डल के साढे असी मने के सान जा दिन चमके जरा सिन्धु मे क्षत्रिय छोड भगे हथियार ४ ५ ५ (10)




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