रामचरितमानस | Ramacharitmanas

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Ramacharitmanas  by तुलसीदास - Tulsidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| || दोहा ॥ यह शोभा समाजसुख, को कहिसके खगेश ॥ बरणें शारद्‌ शेष श्रुति, सो सुख जान महेश ॥ ( बार्तिक ) || रसके पीछे हनुमानजीने स्तुति और फूर्लोंको बरसात करी. इसके पीछे ओरोरामचन्द्रने श्रीमुखसे कहा कि-गोसा- || जी तुम हमको ध्याने देखाकरो. यह कह अंतथान होगये; तव गोसाईजीनि यह दोहा पढ़ा ॥ दोहा ॥ राम- || वाट मन्दाकिनी, भई विमानन भीर ॥ तुठसिदास चन्दन पिस, तिंठक देत रघुवीर ॥ और इस स्थानपर बहुत दिन || रहकर इसी आनदर्मे बहुत कुछ भक्तिभाव कहा है. ॥ ओर एक चित्रकूटे पास दरिद्री बराह्मण रहताथा, सो एकदिन बूत कायल हो विता टगाय जटना वाहा, तव सव || || ठोगोंने बहुत समझाया परंतु न माना, तब गोसाहजी समझाने ठगे और द्वव्यकों निंदा किया, तब उस आह्मणने कवितत || पढ़ा ॥ कवित्त ॥ द्रभ्यहीते देवपूजा परम द्वव्यहीते द्वव्यहीते काम कम दाम बिन पुरुष निकाम है ॥ बिना द्रव्य दारा || ॥ सुत आता पितु सब अरिसे ठगत विधिहृकी गति बाम है ॥ बिना द्रष्य इजंन न जीतो जाइ आद्र न काद्र कहवि || || सुधि बुधि सब खाम है ॥ बिना द्रव्य कहो कौनकी दशा है नीकी मेरे जान द्वव्यहीमें राम है॥ बार्तिक ॥ ऐसे गो- | त उस ब्राह्मणको हठ देख दरिदरमोचनी शिराको दृशंन कराके बड़ा धनी वना दिया, जिसके वेशम आजदिनभी || सग धनी होते €. || रसे जव गोसारैजीकी अद्धतरीा जाहिर होने ठगी तब दिष्टीके बादशाहने वुखवाया ओर गोसार्नीभी गये. तब बाद्‌- || || शाहने हूकुम दिया कि द्रवारमें ठावो, यह सुन गोमारैजी द्रवारमें गये. तव बादशाहने कहा कशमात दिखायो, तव ॥ तुरसीदासजीने कहा मेरे पास्‌ करामात काहेकी ? में तो राम राम कहकर पेढ भरता हूँ तब उसने हुकुम दिया कि ঈহ | || करो. जब गोसार्जी कैद होगये तब रामजो तथा हनुमानजीकी स्तुति शुरू किया-- ४ ( कवित्त ) | || कानन भूधर वारि बयारि द्वा इःख व्याधि परहा अरि घेरे ॥ संकट कोटि वहा तुठसी जह मात पिता सुतं बन्धू न तेरे ॥ | || रखि दै तहं राम रपा करिकै हनुमान्‌से सेवक ह नजिनकेरे ॥ नाक रसातट भरतस रधनायक एक सहायक मेरे ॥ १ ॥ जबहीं यमराज रजायसुते मोहिं ठे वटि भट वाधि नेदैया ॥ संसत घोर पुकारत आरत कौन सुने बहुबार डटैया ॥ एक कृपाठ तहाँ तुलसी दशरत्थके नेंदन बंदि कटेया ॥ तात ने मात न स्वामि सखा सुत बन्धु विशाठ [पत्ति बटेया॥२॥ | जहाँ यमयातन घोर नदी भट कोटि जटचर दन्त कटैया ॥ थार भयंकर वार न पार न बोहित नाव न मीत खेवैया ॥ तुटसी जरह मात पिता न सका नहं कोड कटं अवरंव देवेया॥ तहां बिन कारण राम छृपाठ विशाठ भुना गहि काटि लेवैया६ | स्तुति हलमानजीकी. तोहि न रेसी वृक्षिये हनुमान्‌ हठीठे ॥ साहेव कटं न रामसे तुम ले न उसीढे ॥ तेरे देखत सिंहके शिशु मेंहुक ठीले॥ जानत कठि तेरऊ मनो गुणगण कीठे ॥ हाक सुनत दशकण्ठके भये बधन टीठे ॥ सो बर गयो किं भये अब गवै गरीठे ॥ सेवकको परदा फर तुम समरथ शीठे ॥ अधिक आपुते भपुनो सनमान सहीठे ॥ सांसति तुठसीद्‌सकी खचि | सुयश तुही ठे ॥ तिह्काठ तिनको भरो जे राम रंगीठे ॥ १ ॥ बार्तिक ॥ ऐसे गोसाईजी जब पद बना चुके तब एका- एकी महातिज पतापसहित श्रीहनुमान्‌जी भकट भये, ओर असेख्य वानरीसेनाभी उत्पन्न भई, और पहले सब कैदी छोड दिये. पीछे चौकी पहारेवाले सिपाहियोंकों तमाचा दांत नखोंसे घायल करके निकाल दिया, और बादशाही मकानोंके द्र- वाजे, खंभे, कंगरे शीशा,कपड़े,बिछोने,मच्छरदानी आदि सब तोड़ फोड़ डाठा और बृढ़ा,जवान,लड़का, ठड़की, औरत, मरद्‌ और बेगमोंको जहां जिधर पाया तिधर मार पीट कूट काट करदी, कि जिससे चारों तरफ “हाय हाय ताहि जाहि मच गया; तव बादशाह मय वेगरमोको हाथ जोडके गोसारैजीके शरण आया, ओर बोला मेरा अपराध माफ कीज्यि. ने || जो किया, तिसका फल यथार्थ पाया. अब रामजीके सेरातमे हमारी जान क्स कीजिये, मेरे बाल बच्चे सब मरते हैं, सो यह आफत मिटाइये- यह सुन गोसाईजीने बादशाही महलोंपर निगाह की तो देखते क्या है, कि भखयके समान उपद्रव हो रहा है; तब दयाढु गोसाईजीने हनुमानूजीकी विनय किया, परंतु उपद्रव शांत न हुवा,तब गोसाइजीने यह विष्णुपद्‌ बनाया. || বিদ্যা, मंगठमूरति मारुतिनंद्न ॥ सकलअमंगठमूलनिर्केदेन ॥ प्रवनतनय सन्तन हितकारी ॥ हृदय विराजत अवध- विहारी ॥ मात पिता गुरु गणपति शारद ॥ शिवासमेत शं থুক नारद ॥ घरण वंदि विनवाों सवका ॥ देहु रामपद भक || निबाहू ॥ वैदी राम ठषण वैदेही ॥ ने तुटसीके परमसनेरी ॥ बारतिक ॥ इसपर हनुमानजी अन्त्थोन होगये और | बादशाहने श्रीगोसाईजीकी बडी धूमधामसे सेवा पूजा कर, वरणोद्क ठे, सन महर्होपर छिनकाया और रुपया, अशर्फी , जवाहिरात नावोमें भर सामने ठायके कहा-आप इसको बहण करो-तब गोसाईजीने कहा;कि-हम क्या करेंगे! और यह दोहा पढ़ा ॥ दोहा ॥ तीन दृक कौपीनमें, अर भाजी ब रघुबर प बन्दर ৮২ न ॥ न रत गोसाईजीने यह आज्ञा दुई, कि यह स्थान श्रीहनुमानृजीके चरणकमतोंसे पवित्र हुवा, तुम्हारे रहने ढायक नहीं है; | ह सुनकर उत्तरतरफ यमुनाके किनारे 'आपने ठडकेके नामसे शाहजहांबाद बसाया और उसीमें रहने ढगे और |




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