श्री गिरधर लीलामृत भाग ३ | Shri Giradhar Leelamrit Bhag-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चन्द्रशेखर क्षेत्रीय - Chandrashekhar Shetriya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाँसा कौ पहाडियों में : ५
छोटे खेत थे जिनमें मक्का और चावल की फसने थीं | सौन्दर्य
আলসার वहाँ का जान्त वातावरण वरवस ही तरहाँ आनेब
लोगों के चित्त को आकपित कियें विता नहीं रहता ।
उस क्षेत्र के निवासी सरल हृदय, भोले-भाले, अनपढ़ और
गरीब हैं। साहस और परिश्रम में उनकी तुलना नहीं । वहाँ की
पहाड़ियाँ णेर, वर्धरे, चीते, मालू जैसे हिंसक जन्तुओं से भरी
पड़ी हैं। उन्हीं पहाड़ियों में वे निर्भभ होकर अपने पणओं को
चराते हैँ, घास के गटर और कड़ी की मोलियां लाते है तथा अन्य
आवश्यक कार्य करते है । वे बड़े भले हैं । ऐसे भोलिभाले लोगों के
बीच रह कर सवा करंना बहुत भला कार्य है। दाता ने अपने निश्चय
को स्थायित्व का रूप दे दिया ।'
दाता निवास का निर्माण
प्रयास केर वह भूमि वैश्य से चार हजार रुपयों में खरीद
ली गई। पास की कुछ भूमि और खरीद ली गई। कुछ दूर
पहाड़ियों के मध्य सोलह वीघा जमीन और मिल गई जो बन्धे के
नाम से जानी जाती है और जिसमें अव अनेक फनदार पेंड लगा
दिये गये हैं । गायों के लिए पहाड़ियों के मध्य बीस बीघा गोचर
भूमि की व्यवस्था हो गई। सड़क के किनारे की कुछ पड़त भूमि
सरकार से ले ली गई | इस तरह प्रभु कृपा से कृषि एवं चारागाह
के रूप में भूमि की अच्छी व्यवस्था हो गई ।
भूमि की तो व्यवस्था हो गई किन्तु आवास की समस्या
जटिल थी । कारण, पास में जो पैसा था वह तो कृषि योग्य भूमि के
क्रय करते में खर्च हो गया। नानईशणा स्थित भूमि और मेकान को
विक्रम करने का विचार हुआ, किन्तु वह भी संभव नहीं हो सका ।
मकान तो बनाना ही था । निराश होने कौ -वात नही थी किन्तु
समस्या सामने थी। पास में पैसा नहीं, चूना, रेत अत्यधिक महूँगा.।
चूना तीस किलो मीटर दर से व रेत.बीस कि. मी. दूर से लाना
होता है । कारीगर भी दूर से अर्थात् उदयपुर, दवगढ़, नाथद्वारा,
भीम आदि स्थानों से लाने होते हें । मकान बनाने को तो बात-वात्त
में पैसा चाहिये और पास में फूटी कोड़ी नहीं । केवल मात्र संवल
User Reviews
No Reviews | Add Yours...