न्याय परिचय | Nyay Parichay
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
333
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४४)
भ्रीघरभट्ट के बाद ग्यारहवीं क्षतों में राढ़ देश के राजा हरिवर्म देव के
सस्वी 'सिद्धला! याँद के रहने वाले महत्मीमायक भयरेय भट्ट मे मने प्रस्यों
को रचता को तथा वे प्रसिद्ध पण्डित हुए। मुवनेश्वर म॑ अनन्त वापुदरेवके
मन्दिर में खुदी हुई प्रशह्तियों मे इनका सकल दाख्रविषयक पाष्त्य ठया
इनकी विभिन्न कोरलियाथाएँ वर्णित हैं। न््यायशास्त्र मे विशिष्ट पाण्डिस्प के
बिना भवदेव जैसा मीमातक नहीं हो सकता » बारहवो शताब्दी में महाराज
लक्ष्मणप्रेन के राज्यकाछ में बड्भाल मे हलायुध न्लादि मोमासकू विद्वान् तया
बहव तैयायिक हो गये हैं। मैंने ्रदादरप मे पृद्धों से सुना है कि छ्पणसन
की राजसभा में उनका यश्योवर्घन २रठे हुए किो कवि ने उपस्थित बज्ाल के
নঘাধিকী কী ল্য কাকে কা ই
“भावादभावाद्यदि नातिरिक्त* सबन्धिभि. स्वीकियते पदार्थ, ।
जन्वा5यिनाश्षि प्रतियोगिशुन्य श्रीलक्ष्मणक्षौणिपतेपंः कियू ॥!
अभिप्राय यह है कि नैयायिक के मत में वदायें दो प्रकार के होते हैं--भाव
धथा अभाव । इससे भिन्न पदार्थ का तोघरा प्रकार महीं माना जाता 1
उपयुक्त पछ्ोक के द्वारा कवि कहता है कि सम्वन्धोबुन्द ( समवाय आदि
विभिल सम्वन्धों को जो कहता है अर्थाव नैशाशिकयण ) यदि भाव और
क्षमाव से भिन्न प्रकार दा पदार्थ नहीं मानते हैं तो भूषति श्री एक्मणसेन दा यश
कौन सा पदार्थ है ? वह भावपदं नहीं हो सक्ता । फयोकि लक्षणेन
ক্কা মহা জন্য होने पर भी अविनाधी है। वह (यद) मानागुर्णों से युक्त होने
पर भी क्षविनश्वर है। और जन्य भावपदाये नियप्रतः न्वर हो होता है।
इसी तरह वह अभावपदाये में भी अन्ठभू'त नहीं हो खदता। कारय, यह
( यहा ) प्रतियोगिशुस्प है ( उघ यश का कोई प्रतियोगी अर्थाए विरोधी नहीं
है ) और मभाव सप्रतियोगिक ही होता है गर्षाव् उधका प्रतियोगी अवश्य
होता है । प्रतियोगी से रहित कदावि अभाव नहीं होता ॥ अत एवं एदमणप्तेम
मो यशां अभाव पढादे भी नहीं हो घकता है । बत एवं सम्बन्धियों के मत मे --
'्रीलकम पक्तौणिपतेययः कियू! २
अवसम्दी थे। हिन्तु स्यायकर-दकी में बौद्ध मतों का जिस तरह से प्रतियाद
देखा जाता है उसमे तपा प्रधद्भवधश-गरणरत्तनामरणः कायस्पतुछतिछठकः
वाष्डुदाछ ' कहकर जो प्रशक्षा वी गई है उससे प्रमाणित्र होता है कि पराष्डुशय
बौद़ संप्रदाय बा विरोधी रहा होगा। परद्चात् वहीं का कोई दुघरा राजा
बौद धर्म का झवलम्दी हुआ होगा ।
£ वहाँ वह जानता आवश्यक है कि नेशयिक्गव धमवाय आदि विभिन्न
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