अयोध्या का युद्ध | Ayodhya Ka Yuddh

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Book Image : अयोध्या का युद्ध  - Ayodhya Ka Yuddh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ । अयोध्या का युद्ध मोरक्को के निकट निवास के कारण सुस्लिमो को यूरोप वानि अक्नर मूर कहते हैं। नीयर दक्षिणी रूस की एक विशाल नेदों है ऋषि की भविष्यवाणी से प्रतीत होता है कि कभ्यूनिस्ट देशों में से रूस ही हिंदुत्व के पक्ष मे माक्नवाद का परियाग करेगा | इस सदर्भ मे फासीसी लेखक रीनकोर्टे का उल्लेख जावज्यक है। उनके अनुसार सिद्ध यागी थ्रो रामकप्ण परहस ने चरीर त्याग से कुछ पूर्व भविष्यवाणी की थी कि “मेरा अगला जम भारत के उत्तर-पश्चिनी देश मे होगा” । इसे यो समचिये कि परमहस वा पूत्जे मे हिंदू महामा मे रूप मे होगा। इसमे भी नोस्त्रादम के बचत का समर्थन हो होता है। इस्लाम की अपेक्षा कस्यूनिज्म आज अधिर लोकप्रिय है, दितु हिंदू छर्में के पुनसुत्थान से वे दोनों ही बिलुप्त हो जायेंगे। हिंद राष्ट्र के साथ अपनी मैत्री बे कारण रूस को उसका भारो लाभ मिलेगा । नोस्त्रादेमस ने रूस के सौभाग्य का वणन यो क्या है-- स्‍लाबिक जनता विजयी पद्द मे रहेगी और उनति के चरमोत्वर्ष तक पहुँचेगी वट जपना शुद्र मँद्धातिन पथ छोड देगी पहाड़ी सेना समुद्र पार कर सयुक्त अभियान में शामिल होगो। पचम शतक, २६वा चौपदा | श्री हिरण्पष्पा की चौपदे वी व्याख्या इस भ्रत्रार है-- जब हिंदू सेना पुराने अपराधियों से प्रतिशोध लेती हुई पश्चिम एशिया को रौदेगी तभी काकेशस वे पहाड़ो में मौजुद रूसी सेना उसमे आकर मिल जायेगी, क्षेद्र सिद्धात त्याग से लात्पय काल मार्क्स पथ के निर्देश को छोड़ने से है। रूसी सेना द्वारा पार क्षिया जाने बाता समुद्र या तो भूमष्य सायर ह्टोगा जपवा रृष्ण सागर । अनिवारयंतः यहाँ ऐसी जिज्ञासा हो सरतो है, कि क्‍या ऐसा हांता सभव है ? फ्रासीसी दाशनिक की भविष्यवाणी की पुष्टि करनेवाला भतोपजनेक्र उत्तर यहाँ प्रस्तुत है--+ सन १७२७ ने अक्टूबर मास में अफयान और तुब ईरान के विजित प्रदेश आपस সি বাত লন




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