जीना इसको कहते हैं | Jeena Isko Kahate hain
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= १५ यीं सरी. पुर्तगाल
दायरे के बाहर রপ্ত
नईदुनिया की खोज करने वाले कोलंबस ने भारत पहुंचने का इरादा किया था, परंतु पहुँच
गया अमरीकी महाद्वीप में. उस समय तक यह महांद्वीप पूरी तरह अज्ञात था. साहसी नाविकों के
एक दल को ले कर जब वह अतलांतिक महासागर में उतरा तो बहुत कम लोगों को आशा थी कि
वह जीवित लौट सकेगा. उस के उद्देश्य की सफलता मेँ तो शायद ही किसी को विश्वास रहा हो,
परंतु कोलंबस एक अदूट आशा ले कर निर्भीकतापूर्वक बढ़ता गया. उस के साथियों ने विद्रोह कर
हे आगे बढ़ने से इनकार कर दिया, परंतु वह नई दुनिया की खोज कर सकुशल स्पेन वापस
ट आया.
कोलबस के अदम्य साहस, धैर्य ओर अविचल आशावादिता की चरँ ओर प्ररंसा होने
लगी. परंतु कुछ नाविक एेसे भी थे जो उस कौ कीर्ति से द्वेष कसे लगे ओर उस की उपलब्धि को
कम कर के आंकने लगे.
एक दिन भोजन की मेज पर उस के अनेक मित्र मौजूद थे. उन में से कुछ लोगों ने कहा,
“नई दुनिया को खोज निकालना कोन सा कठिन कार्य है. अतलांतिक सागर में पश्चिम की ओर
चले और पहुंच गए.”
कोलंबस ने विनग्रतापूर्वक कहा, “दोस्तो, संसार में कोई कार्य कठिन नहीं है. आप कृपा
कर के इस अंडे को मेज पर खड़ा कर दीजिए.'' इतना कह कर उस ने एक उबला हुआ अंडा
उठाया. सभी ने कोशिश की परंतु सफल न हो सके. तब कोलंबस ने उस के चौड़े भाग को
पिचका कर अंडा खड़ा कर दिया और कहा, “देखिए कितना सरल है.”
सभी मित्र शर्म से पानी पानी हो गए. उन्हें पता चल गया कि कोलंबस कैसे सफल हुआ.
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