फांसी के तख्ते से | Fhansi Ka Takhte Se

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Fhansi Ka Takhte Se by अमृतराय - Amratray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय ` चौविस घंटे अभी पाँच मिनट में घडी दस वजायेगी | खूबसूरत, गर्माहठ लिये हुए অতল की शाम, अप्रैल २४, १६४२ 1 एक अधेड़ और कुछ-कुछ लँगडाते हुए आदमी की हुलिया बनाये मै जितना तेज चल सकता हूँ चल रहा हूँ-- मैं जेलिनेक के घर पहुँचने की जल्दी मे हूँ जिसमे दस बजने के यानी कर्फ्यू के वक्त घर वंद होने के पहले ही पहुँच जाऊँ। वहां मेया सहायक मिरेक मेरी वाट जोह रहा है। मैं जानता हूँ कि इस बार उसे मुझसे कोई जरूरी बात नही कहनी है, न मुझे ही उससे कोई खास बात कहनी है । लेकिन किसी से मिलना अगर तय हो चुका हो तो फिर उसमें चुक न होनी चाहिए क्योकि उससे नाहक घबराहट फैलती है, और मुझे यह बात बिलकुल मंजूर न होगी कि मेरी वजह से मेरे शरीफ़ मेजवानों को व्यर्थ परी- शान होना पड़े । वे एक प्याली चाय से मेरा स्वागत करते है।मिरेक है --- और फ्रीड दंपती भी । इसी को खतरा मोल लेना कहते है । 'कामरेड्स, मैं तुम लोगों से मिलना चाहता हूँ, लेकिन यों सब साथ नही । इतने आदमियों का इस तरह एक साथ कमरे में होना जेल का, मौत का, सीधा रास्ता है । छिपकर काम करने के जो नियम है तुम लोगों को या तो उनका पालन करना होगा, या हम लोगों का साथ छोड़ देना होगा क्योकि इस तरह तुम खुद अपने को और अपने साथ दूसरो को खतरे में डाल रहे हो । समझे ?” हाँ ॥! “और तुम मेरे लिए क्या लाये हो ?” रेड राइट्स के पहली मई वाले अड्ू; के लिए सामग्री ।” “वाह | और तुम मर्को ?! “कोई नयी बात नहीं । काम ठीक से चल रहा है ... ! “अच्छा तो ठीक है | अब मैं पहली मई के वाद तुम लोगों से मिलूँगा ।॥ पहले खबर भेजूंगा । अच्छा, तो फिर विदा 1! “एक प्याली चाय और ?! “नही-नही, मिसेज जेलिनेक | इस वक्त इस कमरे मे बहुत ज़्यादा लोग हैं ।'




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