समाजशास्त्र का परिचय | Samaj Shastra Ka Parichaya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samaj Shastra Ka Parichaya by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वीरेंद्र प्रकाश शर्मा - Veerendra Prakash Sharma

Add Infomation AboutVeerendra Prakash Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
समाजशास्त्र को प्रकृति 9 (10) অদাহাকল ঈ সন্বিঅনাী জনে জী হাঘলা ই (39০10108515 ০80416 ग ए,८५।८०)- समाजशास्त्र क्या है ?' का अध्ययन करता है तथा उसके आधार पर क्या होगा? की भविष्यवाणी करता है इसलिए समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है। समाजशास्त्र में अनेक समाजशास्त्रियों ने सामाजिक परिवर्तन को भविष्यवाधियाँ की हैं उनमें से कई सत्य निकली है समाज, ग्राम से नमर मे विकसित होता है । संयुका परिवार एकाकी परिवार मे बदलते है । अनेक सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति और इनसे सम्बन्धित अंगों, जैसे--परिवार समूह, संस्था, विवाह, कला, धर्म आदि आगे चलकर क्या रूप धारण करेंगे, इनके सम्बन्ध में समाजशास्त्रियो ने भकिष्यर्ाणियाँ दी हैं ५ 'कोहन ((०॥९॥) ने लिखा है कि सिद्धान्त तथ्यो का घटनाक्रम तथा संक्षप्तीकरण एवं भविष्यवाणी करता है । तयो के सामान्यीकरण का अर्थं यही है कि दी हुई परिस्थितियों मे वर्णित कारक निश्चित प्रभाव तथा परिणाम देगे। समाज सरल से जटिल अवस्था में बदलता है। जैसे-जैसे समाज बदलता है उसमें विशभेदीकरण भी बढ़त्ता जाता है। सपाजशास्त्र भविष्यवाणी करने की क्षमता रखता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र एक विज्ञान है और इसको प्रकृति वैज्ञानिक है। समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की कुछ सीमाएँ (5० [प0णाड त पष्ट इलथातप १४४९० $००००४५)--अभी तक समाजशास्त्र को प्रकृति का अध्ययन वैज्ञानिक सन्दर्भ में किया गया है जिसमें समाजशास्त्र की परिभाषा, अनुसन्धान के चरण, उपकल्पना, वर्गीकरण, सारणीयन, निष्कर्ष आदि पर प्रकाश डाला गया है, समाजशास्त्र ओर विज्ञान की विशेषताओं--कारणता, आनुभविकता, सार्वभौमिकता का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है और यह निष्कर्ष निकाला गया है कि समाजशास्त्र कौ प्रकृति वै्ानिक है किन्तु इसकी वैज्ञानिकता की कुछ सोमा है जिसके कारण समाजशास्त्र कौ प्रकृति भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र आदि प्राकृतिक विज्ञानो जैसी नहीं है। इसका कारण समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति नहीं है बल्कि समाजशास्त्र के अध्ययन को वस्तु स्वयं मानव तथा मानव-समाज की परिवर्तनशील प्रकृति है। गुडे एवं हॉट (00006 910 प्र) ने इस सम्बन्ध में समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की कुछ सीमाओं पर प्रकाश डाला हैं। आपके अनुसार समाजशास्त्र की वैज्ञानिकता की निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सीमाएँ हैं-- समाजशास्त्र की सीमाएँ | ¢ {` ~= ~~ ~ --- भविष्यवाणी वस्तुपरकता सामाजिक घटनाओं अध्ययन कौ वस्तु करने में असमर्थ का अभाव को जटिलता स्वयं मेधावी मानव (1) भविष्यवाणी करने में असमर्थ (#0०५08७८ ण[१००८४०णा)--समाजशास्त्र के विषय मै यह कहा जा सकता है कि यह भविष्यवाणी करने मे अक्षम है । इसके सिद्धान्त सभी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now