वीरसिंह देव चरित | Veersingh Dev Charit

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Veersingh Dev Charit by श्याम सुन्दर द्विवेदी - Shyam Sundar Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीशसिह देव-चरिल शिसावान कर कलित जलज श्रच्छव सिर सोदै । हरि चरनोदक इन्दं शन्द्‌ दुति अति मन सोहे॥ अंग विभूवि विभाति सहित गनपतिं सुखदायका। बृष बाहन संप्राम-सिधि-संजुबव सब लायक || उर चतुर चार चदी वसतु संग कमार हर मार मति। जय शंकर शंका हरन भव पारवती पति सिद्ध गति ॥१॥ थिष्णु जो के शिर पर चोटी, मुन्दर हाथों में बम और शिर के छपए अच्छत शोभा दे रहे है। गणपति ने अपने शरीर पर दिभूति लगा হী है, बढ़ शे।भा दें रहो हैं ॥ सब प्रकःर से योग्य और सप्राम में सिदना भ्राप्त किए हुए शिव (इप्वादन) जा हैं । शिव जो के हृदय मे चक धारण करन वाले (चक्रा) विष्णु भगवान निवास करते हैं श्रौर इर को मारने वाले वार्तिकेय (कुमार) साथ रहते हैं। शकाओों का विनाश करने बाले, पर्वा के प्रति शकर भगवान को जय हो ४2१४ एक[ग्जा मानसिद्द क्छुवाहौ केसीदास, जिहिवर वारिधि कै उदर विदागे हैं। दूसरे अमरसिंह राना सिसौदिया आजु, जासो अर्णिज गजराज হত ভাই ই) तीसरे बुद्देला राजा बीरसिंह ओइले को जाके इख दुखद्‌ जलाल दीन जारे हैं।




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