कौन कहता है अकबर महान था? | Kon Kehta Hai Akhbar Mahan Tha?

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Kon Kehta Hai Akhbar Mahan Tha? by पुरुषोत्तम नागेश ओक - Purushottam Nagesh Ok

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र ফীন कहता है भक्वर महान्‌ धा? तब यह्‌ बसे सम्भव हो सबता हैं कि उसका प्रपितामह अकवर, जिमने ओऔरणगजेब से १०० वर्ष पूर्व की बर्दरता के इतिट्टास काल वा प्रतिनिधित्व किया, समस्त ग्रुणी बी खान हो तथा आदर्श वा प्रतीक हो । इसी सन्दर्भ भे दूसरी बात यह है कि यदि अवबर को सर्वभुण-धम्पल्त मानें लें तो ऐसे कया कारण थे, जिससे उसके पुत्र, पौत़, प्रपोत्त सभी उन गुणों से विम्ुस हो पाशविक रूप में वबर हो गये ? द्वितीय प्रश्त हम बह उपस्थित करना चाहते है कि एक विशेष (अरव- फारस) के रीति-रिवाज के अन्तर्यत्र पैदा हुए तथा पालित-पौषित बिरले ही शाहजादे किसी दूसरी सस्क्धत्ति और सभ्यता की ओर उन्मुख होत॑ देखे गये हैं ? ऐसी स्थिति में अकबर, जिसका धर्म पृथक्‌ था, सस्ट्ृति विपरीत थी तथा शो पूर्णत एवं विदेशी वारशाह था, भारतीय जनता वी अपरिमेय रूप भें प्रेम वरने बसे उन्मुख हो गया ? भारतीय सभ्यता और ससहृत्ति के प्रति उसके अन्तश्चेतन से उदार भाव केसे आ गये ? जौर यदि यह मान भी ले कि उसके मन में इस प्रकार बे' राव तया प्रेम का जन्म एव उन्नयन हुआ तो वैसे उसने स्वय कै द्वारा शाप्तित बहुमत प्राप्त भारतीय धमं, भाषा तथा सस्हृति के साथ अपने-आपको सम्बद्ध क्या या उनसे उसबा मेल हुआ ? यह तो सामान्य अनुभव-सिद्ध तथ्य है कि शासक जिस धर्म और स्ति का अनुषयी होना है, उसके प्रसार का प्रयत्त करता है, न कि उस देश के वासियों के धर्म और सस्दृति वा अनुकरण | १ इस सन्दर्भ में आधुनिक मनोविज्ञान के 'बशानुत्रम' सिद्धान्त का भी पुनरावलोक्त किया जा सकता है । मनो विज्ञान यह मानता है कि माता- पितता कै गुण-अवगुण उनके पुत्र-पुतियो को वशानुनमसे प्राप्त होते ह| यह श्रम पीदी-दर-पीठी चलता है। याद कसी प्रीढी मे इसका अपवाद परितक्षित हो तो इसके लिए उस वश के पुराने इतिहास वा अवलोकन क्या जाता है! अक्वट क वर्व॑स्ता उसे वशातुरम से ही प्राप्त हृ थौ । उमम सदृगुणोका जो आरोप तमाया জালা दै, वे मात्र शाब्दिक आडम्वर हैं! अकबर के वशानुक्तम का यदि पुनयवलोकन क्या जाये तो पता चलेगा कि उसके पिता-प्रपिता सभी कर एवं बवेर थे।




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