निर्देशन के मूल तत्व | Nirdeshan Ke Mool Tatva
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
273
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ निटाणन के मूल तत्त्व
मस्या का भस्तित्व विकासमात मानव के ग़विगीस जीदन वी एव सहज वास्त
विक्ता है ।
झपन वहुध्मायामी “यत्तित्व बे नाना पा में तथा झपने “हमुखी पर्यावरण
दे वर क्षेत्री मे हर प्रवार की समस्याए उसके सम्मुस झाती है । प्रतएव जीवन क
असीम विस्तार के झनुर्॒प হী লন ফাহাছা স नी भवत विभिनटा होती है ६ एक
व्यत्त इसलिय -यथित हौ सक्ता है वि उसकी दृष्टि वतिपय भरमुपत धै उद् श्या
पर झटदी हुई है क्वितु दटाचित वह ক্মলিয भी सम्प्रान्न हो सकता है वि उसके
गिघौरित হয জব पहुँचने हेठु एक লী অনিক राह हैं तथा वर उनम गे चयन नहीं
कर पा रहा है । कोर “यक्ति प्रानी घतरक्षण भावश्यकताप्मा की पूति पर सवने
पर भी एक पपरयापतता य दु खराय भावना स निर दर पीटित होता रहता है
अपने दनन्दित कायकलापो की व्यवधात रहित पूर्ति वरत हुए भी उसकी कुणाग्रबुद्धि
उच्चतर छुनौतियो वे स्फुरण हेतु मचलती-सो रहती है। एवं मय मानव মঘনী
पावाक्षाओ के अतुल साधतन्सुविधापो क॑ भचान के बारगा चिन्तित रह सदता है
पारस्परिव सम्दथा को सतुप्दि हीनता में व्यदस्थित हा सक्गा है मौर बभी-कभी
किसी निभ्याजी मानमिक ढ दिस पो ^ घनतमाश रह सकता है।
उक्त उदाहरणा स॑ स्पष्ट है कि बुद्धिजोवी मानव के बहुझायामी जावन ঘা
नाता प्रकार की समस्याएं विचलित वर सकती हैं ।
थहा यह ध्य(न रहे कि दस प्रकार वी समस््याप्रा का प्स्तिव मातम
डुबलता का थोतक हो यह प्ावश्यक्र नहां । उस्तुत নল बार समस्याग्रा का सत्तेदता
ही उनी को भूचक हो सकता है। विसी कमी की पनुभति ही यक्ति को वह ५
पूण करने वी रोर प्रसितं करती है । ग्रतएद मानद जीवन म॒ जिन समस्याप्ना षा
हमने उलाररण दिया है वह उसके रीक्न कौ एक सहज वास्तवि- ताके रूप
दिया है। या या बहढे ता भी मतिशयोक्ति नच्य णाग कि बद्धिजीवो होन क नाते हा
बह इस प्रकार की समस्यामो वा झनुभव भा कर सकता हू। जस्ाकि प्रारम्भ मही
कट चुके हैं--जीव विकास मापना के उच्चतर वि*दु पर स्थित होने के कारण उसका
यह् विशेषाधिकार है कि व” अपने जावन म दस भ्रफार को कमिया से “यथित होबार
हें पूरा करने का प्रयत्व करे | विवक वुद्धि सम्पन्न होने क बारण ही वह जियाता
से युत धोता है--्रौर जितासा नान कौ । जननी है 1 कहने का तात्मय यहं कि सम
स्याग्ना के अस्ति-व को कसी निषधामक हृप्टिकोण स न देखा जावे यह हमारा
वाचया से आग्रह है। यरि शोघकर्ता जिसो समस्या से परोच्ति न होता ता उससे
सम्दभ्धत्न चान सूचनाएं एक्ित करने हेतु कियाशीत भा न हो सकता ) प्रति पर
मानव की भमतपुव विजया के मुल सम उसक झनत प्रश्न रह हैं झोौर হন সহলা না
माधान क्सने म -सत क्सो भी प्रकार की कठिशव्यों की परवाह नहीं की है।
चमा वर स्वरूप का जिनासा का शमन करन म उने अपन जीवन दयौ वती तया
दीहै।वोी व्यथा षडा সান जियासा समस्या “इन शादा को हम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...