श्री भगवत दर्शन (खंड ५५) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 55 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्तिकी महती महिमा
(१२६३ )
बष्यमानोऽपि मदूमक्तो विषयैरजितेन्द्रियः |
भयः भ्रगस्मया भक्तया विपयेर्नाभिभूयते ॥#
( श्रीमा० १ १स््क० १४श्र० १प्श्लो० )
छप्पय
प पहाढवि भक्ति जरावै তরুন না|
तू चिन्ता मति कर प्रम निर्मल गति 871
योग, सांख्य, जप, दान्, षमत ही रीभू निः ।
भक्ति मार्य ही গ जाहि कामी नहि समुझहिं ॥
र्म सत्य श्र द्वा चुत, तप भरावित विद्या त्िमल |
पूरणं पत्रि न करि सह, भक्तिहीन नरक सकख ॥
आरशियोंझा संसारी विपयोंमें फेस जाना यह् कोई श्राय
की बात नहीं। तिषयोफी ओर तो स्वाभाविक জান ই ही।
आश्रय तो इस वातका दै कि নিঘযী্ট रहते हुए भी बहुतसे उनसे
श्थरू हो जाते हैं। भक्तिमार्ग ऐसा अक्तय লা है कि इसके
भगवान् भीकृष्ण चन्द्रजी उद्धवजीसे कह रहे है-- उद्धव | विषयों
से गाधित केनेपर मी मेय श्रमिवेन््िय मक्त प्राय. परोढामक्तिके प्रमावसे
उ {परक बशीमूत नहीं क्षेत्र, उनसे निकल जाता है।”
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