श्री भगवत दर्शन (खंड ५५) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 55 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
![श्री भगवत दर्शन (खंड ५५) - Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 55 ] Book Image : श्री भगवत दर्शन (खंड ५५) - Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 55 ]](https://epustakalay.com/wp-content/uploads/2019/06/shri-bhagwat-darshan-khand-55-by-shri-prabhudutt-brahmachari-195x300.jpg)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्तिकी महती महिमा
(१२६३ )
बष्यमानोऽपि मदूमक्तो विषयैरजितेन्द्रियः |
भयः भ्रगस्मया भक्तया विपयेर्नाभिभूयते ॥#
( श्रीमा० १ १स््क० १४श्र० १प्श्लो० )
छप्पय
प पहाढवि भक्ति जरावै তরুন না|
तू चिन्ता मति कर प्रम निर्मल गति 871
योग, सांख्य, जप, दान्, षमत ही रीभू निः ।
भक्ति मार्य ही গ जाहि कामी नहि समुझहिं ॥
र्म सत्य श्र द्वा चुत, तप भरावित विद्या त्िमल |
पूरणं पत्रि न करि सह, भक्तिहीन नरक सकख ॥
आरशियोंझा संसारी विपयोंमें फेस जाना यह् कोई श्राय
की बात नहीं। तिषयोफी ओर तो स्वाभाविक জান ই ही।
आश्रय तो इस वातका दै कि নিঘযী্ট रहते हुए भी बहुतसे उनसे
श्थरू हो जाते हैं। भक्तिमार्ग ऐसा अक्तय লা है कि इसके
भगवान् भीकृष्ण चन्द्रजी उद्धवजीसे कह रहे है-- उद्धव | विषयों
से गाधित केनेपर मी मेय श्रमिवेन््िय मक्त प्राय. परोढामक्तिके प्रमावसे
उ {परक बशीमूत नहीं क्षेत्र, उनसे निकल जाता है।”
१९
User Reviews
No Reviews | Add Yours...