श्री भगवत दर्शन (खंड ५५) | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 55 ]

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Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 55 ] by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्तिकी महती महिमा (१२६३ ) बष्यमानोऽपि मदूमक्तो विषयैरजितेन्द्रियः | भयः भ्रगस्मया भक्तया विपयेर्नाभिभूयते ॥# ( श्रीमा० १ १स्‍्क० १४श्र० १प्श्लो० ) छप्पय प पहाढवि भक्ति जरावै তরুন না| तू चिन्ता मति कर प्रम निर्मल गति 871 योग, सांख्य, जप, दान्‌, षमत ही रीभू निः । भक्ति मार्य ही গ जाहि कामी नहि समुझहिं ॥ र्म सत्य श्र द्वा चुत, तप भरावित विद्या त्िमल | पूरणं पत्रि न करि सह, भक्तिहीन नरक सकख ॥ आरशियोंझा संसारी विपयोंमें फेस जाना यह्‌ कोई श्राय की बात नहीं। तिषयोफी ओर तो स्वाभाविक জান ই ही। आश्रय तो इस वातका दै कि নিঘযী্ট रहते हुए भी बहुतसे उनसे श्थरू हो जाते हैं। भक्तिमार्ग ऐसा अक्तय লা है कि इसके भगवान्‌ भीकृष्ण चन्द्रजी उद्धवजीसे कह रहे है-- उद्धव | विषयों से गाधित केनेपर मी मेय श्रमिवेन््िय मक्त प्राय. परोढामक्तिके प्रमावसे उ {परक बशीमूत नहीं क्षेत्र, उनसे निकल जाता है।” १९




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