शालिभद्र-चरित्र | Shalibhadra-Charitra

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Shalibhadra-Charitra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সাবি নলুন্দঘহিল १९७ तेरे घर चीजन होतो क्या मेरा घर कोई दुसरा है ।- क्यो इमे न घर का मेज दिया यह्‌ बालक क्या कोइ दुसरा है ॥३६।॥ कह जल्‍दी से यह क्या माँगे उस चीज से इसे मिलाती हे । मत कहना मूंठी बात ज़रा हम तुमको शपथ दिलाती हैं ।1३७॥ धन्ना ने कहा, कुछ और नहीं यह केवल खीर माँगता है । प्रर घर दुखरे से मोग माँग खाने को बुश मानता है ॥३८॥ मे अपना प्रण तो पहले ही तुम मत्र बहनो को सुना चुकी । जो पका हो दुसरे के घर में वह अर्न नखाती बता चुकी ।1 ३९] मर जाऊ चाहे अपने घर पर नहीं मांगने जॉऊँगी । जब तक जीती बेटे को भी में यही वात सिखलाऊँगी ॥४०॥ 'वस केवल खीर को रोता है? हम खय॑ं अभी लासकती हें । पर प्रणं तेश और संगम का सुनकर लाने में डरती है ॥४१॥ लेकिन कच्ची सामग्री के लेने का त्याग नहीं तुकको । चल हम सामग्री देती हैं, ला खीर बना कर दे इसको? ॥४२॥ सुन कहा दूसरी ने इससे यह कथन तुरहारा ठीक नहीं? । जब जाकर ही यह लावेगी, तब क्या वह होगी भीख नदरी ॥४३॥ यह भिक्लुकती सी खडी रहे, छारे पे ठुम्दारे जाकर के । अभिमान सहित तुम सीतर से, देओ सासप्री लाकर के ॥४४॥ यह देना क्या है, दुसरे को, वे इज्जत करके देना है । वैसे ही अपनो इज्जत खो, वेङ्ञ्चत दोकर लेना दै ।४५ वि




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