शालिभद्र-चरित्र | Shalibhadra-Charitra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
279
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সাবি নলুন্দঘহিল १९७
तेरे घर चीजन होतो क्या मेरा घर कोई दुसरा है ।-
क्यो इमे न घर का मेज दिया यह् बालक क्या कोइ दुसरा है ॥३६।॥
कह जल्दी से यह क्या माँगे उस चीज से इसे मिलाती हे ।
मत कहना मूंठी बात ज़रा हम तुमको शपथ दिलाती हैं ।1३७॥
धन्ना ने कहा, कुछ और नहीं यह केवल खीर माँगता है ।
प्रर घर दुखरे से मोग माँग खाने को बुश मानता है ॥३८॥
मे अपना प्रण तो पहले ही तुम मत्र बहनो को सुना चुकी ।
जो पका हो दुसरे के घर में वह अर्न नखाती बता चुकी ।1 ३९]
मर जाऊ चाहे अपने घर पर नहीं मांगने जॉऊँगी ।
जब तक जीती बेटे को भी में यही वात सिखलाऊँगी ॥४०॥
'वस केवल खीर को रोता है? हम खय॑ं अभी लासकती हें ।
पर प्रणं तेश और संगम का सुनकर लाने में डरती है ॥४१॥
लेकिन कच्ची सामग्री के लेने का त्याग नहीं तुकको ।
चल हम सामग्री देती हैं, ला खीर बना कर दे इसको? ॥४२॥
सुन कहा दूसरी ने इससे यह कथन तुरहारा ठीक नहीं? ।
जब जाकर ही यह लावेगी, तब क्या वह होगी भीख नदरी ॥४३॥
यह भिक्लुकती सी खडी रहे, छारे पे ठुम्दारे जाकर के ।
अभिमान सहित तुम सीतर से, देओ सासप्री लाकर के ॥४४॥
यह देना क्या है, दुसरे को, वे इज्जत करके देना है ।
वैसे ही अपनो इज्जत खो, वेङ्ञ्चत दोकर लेना दै ।४५
वि
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