जैन हितैषी | Jain Hitashi

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Jain Hitashi  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन मैस्रकी एक झलक । शक कुछ जैनलेखोसे गंगवंशीय राजाओंके समयका पता लगता है । चंद्रनाथ बस्तीके एक लेखसे माठूम हुआ है कि उसकी प्रतिमा बालचंद्र-सिद्धांत-भट्टारके दिप्य के....लभद्र-गोरवने विराजमान कराई थी । यह कदाचितू सन्‌ ९५९० की बात है । एक जैनलेखसे पता लगा है कि देवियब्बे कांति नामक स्त्री पाँच दिन तपस्या करके स्वर्गको चढी गई । एक लेखमं चमकब्बे नामक स्त्रीकी सत्य लिखी है । वह उदिग-सेट्टी और डेवरदासय्यकी माता थी । वह॒कुंदकुंदा चार्यकी अनुयायिनी थी । एक और लेखमे महेन्ट्रकीर्ति नामक जैनमुनिका अष्टकर्म झय करके म्वर्गवास (१) लिखा है । इन लेखॉका समय शताब्दि मालम होता है । श्रवणबेलगलके यात्रियोंकि लेख मनोर॑जनसे खाली नहीं हैं । जैसा पहले लिखा जा चका है ये लेख नोवीं और ददवीं शताब्दियोम श्रवणबेलगुलकी प्रतिषछठाकों प्रगट करते हैं । इनमेंमे कुछ लेख आठवीं झताब्दिकें हैं । कुछ लेखेंमें तो केवल यात्रियोंके नाम ही दिये हैं और कुछमें उनका परिचय भी दिया है । पहले प्रकारके लेखॉंकि उदाहरण लीजिए । गंगरवंठ ( गंगवंशीय योद्धा ), बदवरनेंठ ( निधरनेंका मित्र ), श्रीनागती आलदम ( नागतीका झासक ), श्रीराजन चढ्ट ( राजाका व्यापारी ) । दूसरे प्रकारके लेखोंके उदाहरण श्रीएचय्य, शत्रुओंकें लिये कठोर श्रीडशरय्य, द्मरोंकी सख््रियाका ज्येष्ठ; श्रीमदारिष्टनमि पंडित, प्रतिद्वंदी मर्तोका नाशक; श्री नागवमे.... .... सये । और भी बहतसे नाम दिये हैं, जिनम विशेष रविचन्द्रदेव, श्रीकविरत्न, श्रीनागवमे, श्रीवत्सराज बालादित्य, श्रीपुलिकय्य, श्रीचामुण्डस्य. मारसिंगय्य,




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