जैनपदसंग्रह | Jain Pad Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)মলা । ९
সস সপ চল সি জল ভি শপ जोकि
जबते० ॥ ই ॥ विषयचाहज्वालतं द,-ह्यो अनंत
कालतें सु,-धांबुस्पात्पदांकगाह,-तें प्रशांति आई
जबतें० ॥ ४ ॥ या पिन जगजालमें न, शरन
तीनकालेम सं,भाल चितभजों सदीव दोल यह
सुहाह । जबतें० ॥ ५॥
८
भज ऋषिपति ऋषभे ताहि नित, नमत अमर
असुरा । मनमर्थ-मथ दरसावन शिवपथ इष -रथ-च-
क्षुरा ॥ भज० ॥ टेक ॥ जा प्रभु गभठमासपूवे
सुर, कंरी सवणे धरा । जन्मत सुरागिर-
धर युरगनयुत, हेरि पय न्हवन करा ॥ भज०
॥ १॥ नत ब्रत्यकी व्लिय देख प्रभु, তি
पिराग सु थिरा । तबि देवर्षि आय नाय शिर
जिनपद पुष्प धरा ॥ भज० ॥ २ ॥ केवलसमय
जास वच-रंषिने, जगभरम-तिभिर हरा । घुरग-
बोधचारित्रपोतं छदि, भवि भवसिधुनरा ॥ मज `
१ स्य द्रदक्ष्पो भमत अवगाहन करने । २ निना} ३ भादिवाष।
अं कामदेवके मथनेबाले| ५ घोक्षपय | ६ इन्द्र | ७ भप्लर। | ८ छोकांतिकदेव
< वचनकषपी सूर्मने | १० जहान |
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