मानव धर्म | Manav Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अजित कुमार शास्त्री - Ajit Kumar Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १३)
(२९) जण मै ३६ छत्तीस ( मवंथा पराङ्मुख ) श्रौर
श्रांत्मा से ६३ (स्बेथा अनुकूल ) रहा, यही कल्याण कारक है |
(२३) सन वचन और काय के साथ जो कषाय की धृरृत्ति है
घही अनर्ण की जढ़ हैं ।
(२४) सश्पथ के अनुकूल श्रद्धा ही मोक्षमार्ग की आदि
জললী £।
(२५) कल्याण की प्राप्ति आतुरता से नहीं निराकुलता से
शेषी दै ।
(२६) कल्याण का मांगे अपन आपका छोड़ अन्यत्र नहीं।
जब तक अन्यथा देखन की हमारी प्रक्रांत रहेगा, तबतक
कल्याण का मार्ग मिलना अति दुलभ हे ।
(२७) रागद्वेष के काणो से बचन। कल्याण का सच्चा
साधन है ।
(र<) कल्याणं का पथं निर्मल अभिप्राय हैं। इस आत्मा
ने अनादि कॉल से अपनी सेवा नहीं की केबल पर पदार्थों के
प्रह में ही अषने प्रिय जीवन करो भुला दिया । भगवान शर
हन्त का उपदेश है “यदि अपना कल्याण चाहते हो तो पर
पदार्थों से आत्मीयता छोड़ो”
(२६) अभप्राय यदि निमल है तो बाह्य पदार्थ कल्याण में
घाधक और साधक कुछ भी नहीं हैं । साधक और बाधक तो
अपनी ही परिणति है।
(३०) कल्याण का मागं सन्मति में हैं अन्यथा मानव धर्म
का दुरुपयोग है ।
(३९) कल्याण के अरय संसार की भ्रदृत्ति को लक्ष्य न बना
कर अपनी मलिनता को हटाने का प्रयत्न करना चाहिये।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...