नागरीप्रचारिणी पत्रिका अंक १८ | Nagripracharini Patrika, Ank-1-8
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
577
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संपादकीय ইং
उनके तिरोधान ञे हिंदी नागरी के विद्व्मंडल में थो स्थान रिक्त इआ्ना ই.
उसकी पूर्ति निकट भविष्य मे श्व नष्टौ है। ¢
भी छष्णदेवप्रसाद् गौड़
काशी को मस्ती के जीवंत प्रतिनिधि, हास्य व्यंग्य के प्रमुख शिल्पी, नागरिकता
के शिष्ट रूप, सुरुचिसंपन्नता के प्रतीक भी 'बेदब' जी गत £ माचे १६६८ को हमें
छोड़ गए । निषन के समय उनकी वय ७३ वर्ष की थी। मृत्यु के प्रायः एक सप्ताह
पूवं वे एकं कवि संमेलन में प्रयाग गए थे । लौटते ही उन्हें ज्वर हो गया और २-३
दिनों में ही उनकी रुग्णता प्राणघातक रूप में परिणत हो गई। फल्लतः उन्हें काशी-
हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय में शरणागत करना पड़ा और वहीं
उन्होंने अंतिम साँस ली । इधर उनका स्वोस्थ्य दुर्बल अवश्य था पर किसी को यह
श्राशंका नहीं थी कि वे प्रयाण में इतनी शीघ्रता कर काशी की श्रनोखी जीवनपरंपरा
को समेट लेंगे ।
गौड़ जी का जन्म सं० १६५२ को प्रबोधिनी एकादशी को काशी में ही
हुआ था | बाल्यकाल में पितृबियोग के कारण वे श्राजमगढ़ जिले के निभामाबाद
( अपने ननिद्दाल ) में कुछ दिन रहे थे। उनकी शिक्ठा दीक्षा काशी तथा प्रयाग में
ईथी। उन्होंने एम० ए०, एल० टी० किया और काशीस्थ दयानंद स्कूल
(बाद में इंटर कालेज ) अ्रध्यापक होकर जीवन क्षेत्र में प्र3श किया। आगे उसी
विद्यालय के आचाये होकर वे सेवानिवृत्त हुए। वे उन दुलभ व्यक्लियों में थे
जिनमें देवयोग से रूप-रस-ग्रुण का विचित्र समन्वय हुआ था। वे जहाँ कहीं जाते
हास बिखेरते हुए जाते ये और जहाँ नहीं जाते थे वहाँ उनका श्रमाव खटकता था ।
सफल अश्रध्यापक होने के श्रतिरिक्त वे बहुमुखी रुचि के व्यक्ति थे। हास्यः
व्यंग्यकार के रूप में तो हिंदी अगत् उनसे परिचित ही है। ३०-४० वर्षा तक वे
इस दिशा में लगमगाते रहे। उन्हें संगीत से भी बड़ा प्रम था। काशी की प्रमुख
संगीत संस्था “संगीत परिषद्! के वे बरात्रर प्रेरक और संगीत संमेलनों के ध्वागताष्यक्ष
रहे । उनके कारण संगीत में साहित्य का श्रभू तपूर्व संगम होता था। मास्टर साहब
बड़ी शौकीन तबीयत के श्रादमी थे। जिन्होंने उन्हे” निकट से देखा है वे जानते हैं
कि हर वस्तु वे बढ़िया से बढ़िया लाते थे। खाने खिलाने में भी उनका जोड़ कठिन
है। उनका सुरुचिपूर्ण ग्रंयसंप्रह तथा उनकी अन्य सभी उपयोग को बस्तुएँ उनकी
इस रईसी तबीयत और परिष्कृत सुरुचि की साक्षी ई ।
अनेक वर्षों तक वे उत्तर प्रदेशीय विधान परिषद् के मनोनीत शदस्य रहे |
काशी हो नहीं, बाहर भी क॒दाचित् ही कोई ऐसी संस्था होगी जिसका उनसे किसी न
फिसो प्रद्वार संबंध न रहा हो। हिंदी साहित्य संमेशन के कोटा अधिवेशन में
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