रजत-जयंती | rajat-jayanti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
581
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“आशिषः आशास्ते”
श्री काशी विद्यापीठकी स्थापना, श्री शिवप्रसाद ॒गुप्तजीक उदार हृदयने किया, और इसका
उद्घाटन महात्मा गांधीजीके पवित्र हाथों ने | पच्चीस वर्ष बाल्य और यौवनक पूरे करके, अब यह
प्रौदावस्थामें प्रवेश कर रहा है । बाल्य और यौवनमें मूले किससे नहीं होतीं ? सब आशा किसकी
पूरी होती हैं ? यदि इस संस्थासे भी भूलें हुईं, और स्थापकके संकल्पमें जो आशाएँ थीं, उनको
पूरी न कर सकी, तो क्या आश्चर्य | पर, देशके सामने इसके प्रबन्धकों, अध्यापकों, अध्येताओंने,
त्याग, तपस्या, देशभक्तिका अच्छा उदाहरण रक्खा, और भारतक सभी मप्रान्तोंम राष्ट्रीयमाव जगानेमें
कांग्रेस की सहायताकी | यदि उस আবার आशासित कार्य सिद्धि नहीं हुईं, तो यह कांग्रेसके
नेताओंके मानुप्य-सुरुम बुद्धि-दोष जीर अदरदर्दितासे । मानव-संसार मात्र की परिस्थितिमी अधिकाधिक
करुहमय, युद्धमय, नितान्त जदि होती गयी है, जिसका सुलझाना अब बहुत कठिन हो गया हे ।
पर॒ अव भी सम्मान्य नहीं है । सम्वत् १९८५ विक्रम सन् १९२९ ईै° में, जब काडी
विद्यापीटकं वार्षिकोत्सव महात्मा गांधी उपस्थित ये, मेने उनसे, सभाक समश्च, इस संस्थाकी
प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले बीजम॑त्रकी प्राथंनाक्री थी। उन्होंने मुझले कहा कि यह काम तुम ही
करो! । तब मैंने, उपस्थित जनताके समक्ष यही कहा था कि 'कर्मणावर्णः, वयसाआश्रमः” अर्थात्
“विरव-धम, अध्यात्म-विद्या पर प्रतिष्ठित, चातुेण्ये-चातुराश्चम्य ऽत्मक समाज व्यवस्था! ही ऐसा
वीजरमेतर हे; नितान्त प्राचीन भी और नित्य नवीन भी; 'वरूड आर्डर फेडेड ऑन वल ड-रिलिजन,
सैकोलोजी, फ़िल्ॉंसोफ़ी'---यदि इस बीज-मंत्रके अनुसार, विवेक-पूर्वक कार्य किया जाय, तो
अब भी, भारतवर्षकी, तथा अन्य सब देशोंकी, जनताका उद्धार हो सकता है। में यही आशा
करता रहता हैं कि काशी-विद्यापीठके कार्य-कर्ताओं, तथा कांग्रेसके नेताओं, तथा अन्य देशोंके
नायकोंकी दृष्टि इस ओर फिरे |
मोर १४ माघ, वि० २००३ | ৮9৫০6 “24 (21६
( २७ जनवरी १९४७ ई० ) 4৮
> ৯ সঃ সঃ
काशी विद्यापीठने अपनी जिन्दगीके पच्चीस बरस पूरे कर लिये और अब उसकी सिलवर
जुबली मनाई जा रही है। यह विद्यापीठ हमारी आजादीकी तहरीकसे पैदा हुआ था जीर
महात्मा गाँधीने इसकी नींव अपने हाथोंसे रकखी थी | मेँ इस मौके पर अपनी दविरी मुबारकबाद
पेश करता हूं और उम्मीद करता हूँ क्रि यह विद्यापीठ हमारी कोमी तालीमके मैदानमें हमेशा
शानदार खिदमत অন্সাল देता रहेगा ।
दिल्ली, १९५ दिसम्बर १९४६ ई० । अवुल कलाम आजाद्
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