पद संग्रह भाग 1 | Pad Sangraha Bhag 1
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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No Information available about कर्पूरचन्द्र जी - Karpurchandra Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १९)
पड वशश
( राग-वेज्ा उल्न, )
मंद बिपयशशि दीपतो, रवितेज घनेरो;
आतम सहजस्वभावथी, विभाव अंधेरो. मेंद० १
जाग जीयो अब परिहरो, भववास वसेरो;
भववासी आशा ग्रही, भयो जगवको थेरो , मंद ० २
आज तजी निर्योचता, पेद शाश्ता दरो;
चिदानंद निज रूपको, सुख जाण भलेरो, मंद० ३
ॐ
पद अग्यारऊं
( राग उपरनो )
ज्ोग जुगंति जाण्या विना, कहा नाम धरावे;
रमाँपति कहे रंकेकुं, धन हाथ न आवबे, जोग० १
भेख धरी मार्या करी, অবনত भरमावे;
पूरण परमानंदकी, सैधी रंच न पावे, जोग० २
मन भड्या विना मुंडकुं, अति घेट मुंडावे
जटाजूट शिर धारके, कोड कान फर्रावे. जोग०
१ विषयरूप चन्द्र. २ आत्मा. २ ताबेदार, सेवक
& भनिराशीमाव-निःस्पृ्ता. ५ शाश्वत पद्. ६ जज
१ अष्टांगयोग अथवा सयमयोग थवा तपयोग के
वीयंयोग. २ रस्य. ३ श. ७ धनपति. ५ भरीक्ने. ६
कपट. ७ शोध = कडावे.
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