श्री तरण तरण श्रावकाचार | Shree Taran Taran Shravkachaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन १४ ग्रन्थों में श्रावकाचार, पंडितपूजा, मालारोहण का उत्था मेरे द्वारा हुआ है। कमलबत्तीसी का उल्था बाबू जगरूपसहाय बी. ए., एल.एल.बी. वकील एटा (यू.पी.) द्वारा हुआ है। इनमें से प्रथम उपदेश शुद्ध सार तथा ज्ञान समुच्चय सार का उल्था होना योग्य है। ये दोनों बहुत उपयोगी उपदेशी ग्रन्थ हैं। ममल पाहुड ग्रन्थ उच्च श्रेणी के आध्यात्मरसिक महात्माओं के ही आनंद की वस्तु है। इसकी टीका बुद्धिमानों के लिये आत्मविचार में उपयोगी होगी। चौवीस ठाणा को विचार करके गोम्मटसार से मिलाकर शुद्ध करके व और विषय जोड़कर प्रकाश योग्य है। त्रिभंगीसार भी उपयोगी है, बुद्धिमत्ता के साथ अर्थ करना योग्य है। खातिका स्वभाव, सिद्ध स्वभाव, शून्य स्वभाव में विषय बहुत अल्प है। आध्यात्मिक भाव से विचारने योग्य है। नाममाला और छद्मस्थ वाणी स्वयं तारणतरण स्वामी रचित नहीं मालूम होती हैं, पीछे से रचित हैं। कुछ कथन ऐसा भी है, जो प्राचीन दि. जैन सिद्धांत से नहीं मिलता है। श्री तारणतरण स्वामी का समाधिस्थान मह्हारगढ़ वेतवा नदी के तट पर बहुत रमणीय व ध्यानयोग्य है। यहाँ मकान भी सुन्दर बने हुए हैं। हमने स्वयं इस स्थान का दर्शन दो बार किया है। अन्त में ता. १५ मार्च १९३३ को किया है, वेतवानदी से १ मील किले के समान बृहत्‌ भवन कोट सहित




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