विमल भक्ति विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका | Vimal Bhakti Vimal Gyan Prabodhini Teeka
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
457
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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२ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
अन्वयार्थ--( जिनेन्द्र ) हे जिनेन्द्र । (त्रैलोक्याधिपते ) हे तीन
लोक के अधिपति । मुञ्च ( पापिष्ठेन ) पापी ( दुरात्मना ) दुष्ट ( जडधिया )
जड बुद्धि ( मायाविना ) मायाचारी ( लोभिना ) लोभी ( रागद्ेष-मलीमसेन )
राग-द्रेष रूपी मल से मलिन ( मनसा ) मन से ( यत् ) जो ( दुष्कर्म )
अशुभ कर्म ( निर्मित ) किये हे । ( सतत ) निरन्तर ( सत्पथे ) सन्मार्ग मे
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( वर्वर्तिषु ) प्रवृत्ति करने की इच्छा करने वाला ८ अह ) मै ( अधुना ) इस 98
समय ८ भवत ) आपके ( श्री-पादमूले ) अनन्त चतुष्टयरूप लक्ष्मी से 8
सम्पन्न चरण-कमलो मे ( निन्दापूर्व ) निन्दापूर्वक ( जहामि ) छोडता हूं ।
328 भावार्थ--हे तीन लोक के अधिपति जिनेन्द्र देव | मुझ पापी, दुष्ट, ?
अज्ञानी, मायाचारी, लोभी के द्वारा राग-द्वेष रूपी मल से मलीन मन के द्वारा
976 जिन पाप-कर्मो का उपार्जन किया गया है, उन पाप कर्मो को मै अनत चतुष्टय ध
26% रूप लक्ष्मी से सम्पन्न आपके चरण-कमलो मे निन्दापूर्वक छोड़ता हूँ। तथा 82
রি अब इस समय निरन्तर सन्मार्ग मे प्रवृत्ति करने की इच्छा करता हूं । [ जिनेन्द्र টন
রি की साक्षीपूर्वक पाप-कर्मो का त्याग करता हू इस प्रकार यह सकल्प सूत्र है ] १
५ संकल्प सूत्र টা
9 खम्मामि सव्व-जीवाणं सव्ये जीवा खमतु मे। ঠা
५ मित्ती मे सव्य- भूदेसु वैर मज्छ्मंण केण वि ।।३।। ध)
9 अन्यार्थ -( सव्वजीवाण ) समस्त जीवो को ( खम्मामि ) मै क्षमा রঃ
का करता हूं ( सव्वे जीवा ) सभी जीव ( मे खमतु ) मुझे क्षमा करे। (मे) 8০
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मेरा ( सव्वभूदेसु ) सभी जीवो मे ( मित्ती ) मैत्रीभाव है, (केण वि ) ओर
किसी के प्रति ( मज्ज) मेरा ( वैर) वैरभाव (ण) नहीहै।
भावार्थ- मे ससार के समस्त प्राणियो के प्रति क्षमा भाव धारण
करता हूं । समस्त प्राणी भी मुञ्च पर क्षमा भाव धारण करे । ससार के सभी
जीवो मे मेरा मैत्री भाव है तथा किसी भी जीव के साथ मेरा वैर-विरोध
928 नही है।
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राग परित्याग सूत्र
राग- बन्ध -पदीसं च हरिसं रीण- भावयं ।
उस्सुगत्तं भयं सोगं रदि- परदिं च वोख्सरे ।। ४।।
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