पाषाण - कन्या | Pashan Kanya

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Pashan Kanya by कंचन कुमार - Kanchan Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ सुनी धूप मं देवप्रयाग सोने-सा दमक रहा था | नागफन्नी से भरे सामने वाले पहाड़ पर बसी हुई बस्ती के पीछे, झॉँकते हुए. सफेद-सफेद आदलों के इकड़े अजीब से लग रहे थे | टहलने के लिए, धमंशाले से बाहर निकलते .ही देखा आसन लगा कर बैरे थे एक महाराज । वे बढ़े भाव से केदार, बद्री, गंगीन्नी, जमनोत्री की कहानी सुना रहे' थे । सामने कुछ पेसे पड़े थे । पेशावर शर के पुराने कस्मे म॑ एक बाजार है, जिसे कहते हैं किस्सा জানি” না 'किस्सा-- कहानी? बाजार ! इस बाजार में दूसरे सामानों की तरह जी चीज बिकती थी, वह थी किस्सा या कहानी किस्सा सुनानेवाला एकं दरी बिछाकर बैठ जाता था और सनने वालों का कुणड' बैठता था उनके आमने-सामने | और एक या दो आने के बदलते वह किस्सा सुनाते ये। इस तरह की कहानियों की दूकान संसार में और कहीं थी या नहीं, यह में नहीं जानता | सुना है, उन दिनों यूरोप की सरायों में किस्सा सुनानेवाले रहते थे | | , :




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