हरिजन मन्दिर प्रवेश एक अध्ययन | Harijan Mandir Pravesh (Ek Adhyyan)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बापू ने कहा था
अऋष्यूश्वता यानी छुआइूत ।
यह वीज जह।-तह। धमं मे, धमेके
नाम या बह्ने ते विघ्न डालत्ती है
और धर्म को कलुषित करती रहती
है। यदि आत्मा एक ही है, शैशवर
एक ही है, तो अछूत कोई न्ही।
भगी, चमार সরল माने जाते हैं,
पर अछूत नहीं हैं | भगी चमार
आदि नाम ही तिरत्कार सुचक हो
गये है और वह जन्म से ही अछूत £
माना जाता हैं। उसने चाहे मनों #
साबुन बरसों तक शरीर पर धिसा
हो, चाहे केशव काझसा भेस £
रखता हो, माला--कंठी पारण
करता हो, चाहे वह नित्य गीता
पार करता हो भौर लेखक का पेशा करता हो, तथापि है अबूत । ङ्से
भरम मानना या ऐसा बताव होना धर्म नहीं है, यह अधर्म है और नाश के
योग्य ह | अखृश्यता--छुआबूत हिंदू-पर्म का अंग नहीं है । इतना हौ
লী, ধক उसमे छुती हुई सडन है, वहम है, प्राप है और उसका निक -
रण करना अत्येक हिंदू का धर्म है, उसका परम करोव्य है | यह छुआदूत
मिधमियो के प्रति आई है, अन्य संग्पदायों के प्रति आई है, एक ही
संप्रदाय वालों के बीच भी धुस गई है और यहां तक कि कुछ लोग तो
মুন त का पालन' करते-करते पृथ्वी षर मार रूप हो गए है | श्रसृश्यता
दूर करने का अर्थ है समस्त संसार के साय मित्रता रखना, उत्तका सेवक
बनना | इस दृष्टि से असृश्यता-निवारण अहिंसा का जोड़ा बन जाता है
और बस्तव मे ই মী | মা ঈ मानी है जीवमान के प्रति पूर्ण प्रेम |
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