जयोदय महाकाव्य | Jayodaya Mahakavya

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Jayodaya Mahakavya  by पंडित हीरालाल जैन - Pandit Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १२) १२. अष्टपाहुडका पद्मानुवाव--यह श्रेयोमार्गमें क्रमश: प्रकाशित हुआ है | १३. सातव जीवन--इसमे मनुष्य जीवनकी महत्ता बताकर क्न्य पथपर चखनेको प्रेरणा की गई है । १४ स्वासो कुम्वकुन्द और सनातन जैन धमं--दइसमे अनेक प्रमाणोसे सत्याथं जेनधर्मंका निरूपण स्वामी क्ुन्दकुन्दके ग्रस्थोके आधारपर किया गया है। রর प्रकार अध्ययन-अध्यापन करते हुए और नये-तये भ्रन्थोकी रचना करते हुए जब आपकी युवावस्था बीती तव आपके मनमें चारित्रको धारण कर आत्मकल्याणकी भावना जगी | फलस्वरूप बालब्रह्माचारी होते हुए भी ब्रतरूपसे ब्रह्मचर्य प्रतिमा वि० सं० २००४ में धारण कर ली। इस अवस्थामे भी आप अपनी ज्ञानोपाजैनकी साधनामें बराबर रूगे रहे और इस बीच प्रकाशित हुए सिद्धान्त ग्रन्थ श्रौघवल जयधवल, महाबन्धका भापने विधिवत्‌ स्वाध्याय किया । जब विरक्ति भौर बदी तो आपने वि० सं° २०१२ में क्षुल्लक दीक्षा ले ली। लगभग २-२॥ वर्ष त्तक और इसमें अभ्यस्त हो जानेषपर आपकी विरक्ति गौर उदासोनत्ता भौर भी बढ़ी और वि० स० २०१४ में आपने भाचायं शिवसागरजी महाराजसे खानियाँ (जयपुर) मे मुन्ति दीक्षा ग्रहण की | तबसे आप मरण-पयन्त बराबर निर्दोष मुनि व्रत्तका पालन करते हुए निरन्तर शास्त्र अध्ययन-मनन और चिन्तनमे लगे रहे । आपका समाधिमरण नसीराबादमे ६ वर्ष पूर्व हुआ, जहाँपर सारी जेन- समाजने आपका भव्य स्मारक बनाया है। पर चिरस्थायी स्मारक तो उनकी उक्त अनुपम रचनाएं हैं | मापने प्रौढ प्रङ्र ओर अनुप्रास, रस, अलंकार आदि काव्यगत सभी विशेषताभके साथ जेनधमंके प्राणभृत भर्हिसा, सत्य भादि मूखत्रत्तो एवं साम्य- वाद, अनेकान्तवाद, कमंवाद मादि जागमिकं एवं दाशंनिक विषयोका प्रति- पादन करते हुए पाँच काव्यग्रन्थोकी रचना को है। अन्तिम निवेदन जिन दातारोंने प्रस्तुत ग्रन्थके प्रकाशनाथं उदारता-पुबंक दान दिया है, उन्हे और धार्मिक प्रवृत्तिवाले स्वाध्याय-श्रेमी पाठकोंको इस महाकाव्यके पढनेपर सम्भवतः निराशा हस्तगत होगी कि स्व ° भाचायं श्व ज्ञानसागरजी महाराजने इसे रचकर स्वाध्याय करनेवारोके किए कौन-सी अनुपम वस्तु दी है ? उन पाठके मेरा नम्र निवेदन है कि इसे धमंशास्त्रका ग्रन्थ न समझकर




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