जैन विज्ञान | Jain Vigyan

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Jain Vigyan by हरिमत्प भट्टाचार्य - Harimatp Bhattachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द पिज्ञान ह्यों-ज्यों विशरास बी ओए बढ़ता जा रा है, त्यौ्यो जन धर्म फे मान्य विष्यो का प्रतिपादन होता जा रहा है। इन घपो में आणविक यातें चल ही रही थी कि राकेटों ओर सनिं फी भातं सामने यनि छगी तमो तो आज के युग फो विज्ञान का युग कद्दा जाता है। आज के वैज्ञानिरों ने निर्माण करने फे घदले ध्यम करते की सामप्री अविझ दी हैं। आणपिक युद्धों की भयाडा से समस्त ससार अशान्त और थध्याकुर दो उठा दै। चारों तरफ से एक दी आवाज आ रही ६ फि इन प्रटयकासो साधनों रौ बन्द किया जाय और जनदित कार्यों में उपयोग हो सके, ऐसे ही साधन थढायें जाय, बरना सम्यवा का नारों हो जायगा; फर्योडि




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