अग्नि बीज | Agni Beej

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Agni Beej by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अग्निबोज || १७ तीन आदमी ग्रोधी महात्मा की जय के साथ ज्वाला बाबू की जय भी बोलने लगे । --वहू सीधे मंच पर चढ़कर बैठ गया । --मुके कादो तो खून नहीं। समझ में ही नहीं आया कि भव्‌ या क़िया जाय । कार्यकर्ती एक दूसरे का मुँह देखने लगे, जैसे सब रंग में भंग हो गया हो । ज्वाला ने खुद मंच से बोलना शुरू कर दिया, कार्यक्रम शुरू करो, भाई ४ तभी किसी ने सो काका के बारे मे पूछ लिमा 1 'उसे मैंने सवेरे ही जौनपुर भेज दियाथा। दुलहिन की तबियत बहुत खराब है ।” उसते जोर से कहा, अब काहे की देर है ?” --को$ दूसरा उपाय न देख, मैने लोगों को भपनी वात किसी तर्‌ समभायी और फिर कमल भाई के भाषण के बाद सभा समाप्त कर दी । सारी फूल-मालायें बेकार हो गयी, प्रद्वमरी स्कूल के बच्चों का स्वागत गान धरा रह गया और मैंते मन-हो-मन दो दिनों से जो भाषण तैयार किया था, वह आज तक नही दे पाया । सोचा था कि आथम के साथ यहाँ की जनता के सामने एक ऐसे व्यक्ति को आदर दिया जायेगा, जी सच्चे अर्थों में उसका पात्र हे और इस तरह यहाँ एक नयौ धारणा का जन्म होगा । लोग सही थादमियों को सम्मान देना सीखेंगे । लेकिन यह केसी विडंबना है कि चाहते हुए भी मैं कुछ व कर पाया | --मैं लोगो के साथ दूर खड़ा तब तक वात करता रहा, जब तक ज्वात्ता वह से चला नहीं गया । प्राइमरी स्कूल के दो-एक अध्यापकों ने मुझसे बताया कि वे जो दो-तोन आदमी उसकी जय बोल रहे ये, वे पहले से ही इस काम के लिए तैयार किये गये थे। उसे यहाँ का पूरा कार्यक्रम मालूम हो गया था । इसी कारण उसने जान्‌-वूभकर साधो काकाको बाहर भेज दिया भा। “उनके साथ इसी तरह के अन्याय वह अक्सर करता रहता था । चोगो द बीच उन्हें इस ठंग से जपमातिन कर्ता कि बह कुछ दोल ही नही पाते थे । उनके चेत दवा लिये थे । गु वपने असामि से जुतवा




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