मधुमालती वार्ता | Madhumalti Varta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) तथा भाषाशास्त्र की दृष्टि से इस ग्रंथ की भाषा में अनेक अनुशीलनीय विशेषताएँ उपलब्ध होने की पर्यात संभावना भी ই | माधवशममा के संशोधित संस्करण से तत्कालीन कृष्णभक्ति के प्रभावशाली स्वरूप का श्रीर साथ ही साथ कृष्णभक्ति की दृष्टि से मथुरा, इंदावन और वहाँ होनेवाले मज्नन-कीतन, पूजा-श्र्चना एवं इृष्णलीलाओं की मधुरभक्ति का भी प्रमाण मिल जाता है | इन सब्र दृष्टियाँ से प्रस्तुत क्रति का महत्व स्पष्ट हो उठता है। श्राशा दै, प्रततुत ग्रंथ के संपादन से--र्हिदी के मध्यकालीन साहित्य-श्रनुशीलको को प्रेग्णा श्रोर নথ कोका से परिशीलन करने की दिशा प्राप्त शोगी | ऐतिहासिक, सामाजिक, साहित्यिक, भापापरक और भारतीय प्रेमकथाओं की परंपरामूलक हड से ग्रंथ का श्रव्ययन होने पर अनेक नई वातें सामने श्राएँगी | संपादक ने जिस श्रम, लगन ओर दीपघ॑कालीन श्रध्यवसाय के छाथ ग्रंथ का संपादन किया है, उसके लिये हम उसका हार्दिक अभिनंदन करते हैं । अंथ के आरंभ में प्राकक्थन! ( पूष्ठी ५ ) तथा 'रचयिता श्रीर रचनाकाल? ( १८ प्रर्ठा )--द्वारा डा० गुप्त ने इस ग्रंथ की कुछ विशेषताश्रों का संकेत किया है, रचनाकार ओर कृति के काल का यथासंभव विचार भी किया है, संपादन की शैली एवं उसकी आधारभूत प्रतियों का वर्गीकृत परिचय दिया है, चतु्जदाख के मूल काव्यरूप श्रीर माधचशमों के संशोधित ग्ंथरूप तथा उनकी कथाओं का परिचय देते हुए--उनके संबंध में अपने विचार त्रताएं हैं तथा मनपाठ के निर्धारण में स्व-स्त्रीकृत दृष्टि का उल्लेख भी किया है। विभिन्‍न वर्ग की प्रतिश्रों के पाठांतर देकर मूल ग्रंथ का संपाठन -बड़ी योग्यता के साथ किया गया हे | काफीलंवे 'परिशिष्ट में अस्वीक्षत छुंदों का विस्तृत उल्लेख মী ই। लगभग १४ परत मे विशिष्ट शर्व्दों के अर्थ भी दिए गए हैं। अंत में संवत्‌ १७०७ वाले पूरे दस्तलेख को--जिसके श्रारंम में ग्रथ का नाम मधमालती रखविलाख है ओर अंत में जिसे भघुमालती कथा कहा गया ह-- पूर्णतः दे दिया गया है। इन सत्रते अनुसंधानकर्ताओं के लिये ग्रंथ का संपा- दित रूप उपयोगी द्वो उठा है। आशा है, मध्यकालीन हिंदी साहित्य के अध्येताओं द्वारा इस ग्रंथ का गहराई के साथ अध्ययन होंगा और इसके गुणदोधों की परीक्षा की जायगी |




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