अमृत | Amrit

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Amrit  by लक्ष्मी शंकर मिश्र - Lakshmi Shankar Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अधि: १८५४ নন तुक्षिकए ढेहर काम काने बढ़ा | उसका खासा-यीना छूट गया । तम-चदय हा दास ने रहा | दित-रात बस जाम करता धा} एक संदीता पूरा दो उहा था। {नच सुधाकर्‌ उक्षन्‌ राक्र कर लिया । নিয়ন दिस पर राजकमारी आई। चित्र देग्वा, फिर सापसंद्‌ । নই জাতজ से चित्रकार ने पृथ्ठा-- গন কথা কী হা इसमे १? राजझुमारी ने उत्तर दिया-- #तुप्र तो कल्ाकार ही, इतना भी नहीं जान सकते ९? + “आप ही बताएं, आभारों हुगा 1” इसमें सजीवता नदी | इसका रंग असपतली-जेसा नहीं लगता) गालो पर स्वाभाविक गुलाबी रंग होना चाहिए 1” | चित्रक्तार सोच में पड़ गया । राजकुमारी ने कहा-- “জী बात तुम्हारे पहले चित्र में थी; वह इसमें नहीं । यह ` चिच मुभे जचा नरह ४” चिन्रक।र बोला- “तो एक बार फिर अवसर दीजिए, ओर प्रय कष गा 1 राजकुमारी ने एक महीने बाद आते का वादा किया, ओर चली गई। चित्रकार का सन चंचल हो उठा । क्‍या -करंनांचाहिए ? ग्राहक हाथ से निकला जा रहांथा | सारी आंशाओं पर पानी




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