सोहन काव्य कथा मंज्जरी भाग २० | Sohan Kavya Katha Manjjari Bhaag 20
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीनों बालक लख तीनों ही, मन में ग्रति विस्मय पाई ।
किस तरह पिछाने कौन पति है, इन तीनों बच्चों मांही ।।
फिर भी अंदाजे से पति लख, उठा लिया करके मांही ।
कहे सती से निज रूपों में, केसे आयेंगे बाई।।
अनुसूया ने पानी छांटकर, बना दिया है रूप खरा (॥१२।।कभी।।
ब्रह्माणी देखे मैंने तो, पति मिस विष्णु उठा लिया ।
হা হা को उमा ब्रह्म को, पति रूप स्वीकार किया ॥
अत: सभी शभिन्दा होकर, अनुसूया के पैर छिया ।
सच्ची सती है तृ ही जग में, हमने मिथ्या गये किया ।।
नारदजी ने कही बात पर, हुआ नहीं विश्वास खरा 11१३।।कभी।।
इतने दिन हम यह समभती, हमसे बढ़कर कौन महान् ।
ग्रत: हमारे दिल पर छा रहा, सदा सर्वेदा यह মিলান ||
. भान हो गया आज हमें यह, था निश्चय में भूठा मान ।
अब समभी हम इस जगती पर, एक-एक से एक महान् ॥।
ग्राज आपसे शिक्षा पाई, कभी नहीं अभिमान करां 11१४॥।कभी।।
माफी मांग निज पति संग ले, अपने-अपने स्थान गई ।
केभी गवं मत करना दिल मे, सुनकर यह् उपदेश सही ।।
कभी यहाँ थी ऐसी सतियाँ, आकर देवियाँ चरण गही ।
गुण गाती थीं युक्त कंठ से, धन जननी हो घन्य मही ।।
पतन हौ गया कितना यहाँ श्रव, ग्रंख खोलकर देखो जरा ।॥ १५।।कभी।।
प्राज्ञ प्रसादे सोहन मुनि कटै, केथा भागवत में श्राई् ।
जेसी देखी वैसी ही यर्हा, जोड लावणी में गाई।।
कम ज्यादा का मिथ्या दुष्कृत, दू मै इष्ट कौ साख करी 1
दो हजार चौंतीस फागण बुद, ग्यारस रवि दिन शुद्ध घड़ी ॥
जस नगर में ठाणा पाँच से, आये झ्रानन््द पाया बड़ा ॥१६।॥।कभी।।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...