हम मोहरे दिन रात के | Ham Mohare Din Raat Ke

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Ham Mohare Din Raat Ke by सुनीता - Sunita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विरया जनम हमारो ७ ७ सारा घर साफ करवाने मे लगी है 1 शाम को बिना उधर से निर्वला | मैंने पड कर पूछा, “झर बिन्‍्नू, माँ कसी है ? पता नहीं ।' वह भाग गया | मैं भसमजस मे ही रह गई। जरा दिन चढ़े सादर मैं उठती हूँ | अगले दिन उठ घर की दरार मे भाँका तो धक्का सा लगा | वकील साहव के यहाँ बडी शान्ति थी | बच्चो का कोलाहल सुनाई नहीं दंता था। राज ता लान भे लडत- भगडत खेबत रहत थे सय । दसक वजे फिर उधर निगाह गई । देखा पाँचो लड़के नहाएं धोए बरामते म कतार वाँध वस्ता पटटी लिए बठ हैं और गिरघर शास्त्री स्टूल पर बढे उनका काम जाँच रहे हैं। बच्चे कोई विशेष प्रसनन नजर नही ग्राते, गर्मियों का छुटिटयो में विदयारम्भ देखबर कुछ साचूं कि इसके पहले टी खवरे भ्रान लगौ । जुगनी न आकर बताया, जी वहा था वही हुमा न आखिर | मिस्सर दी छटटा | चौवा चवकी खुद समाल बटी है। ग्रौर भिस्मर क बल्ले शास्त्री जा बुनाएं गए हैं। बच्चे वकार भमट मे फ्सा दिए गए हैं भ्रभा से । बचारे |! दोपहर काई दा वजे राजश माँ से सिलाई वी मशीन माँगन आया। माँ ने आश्चय स पूछा, * क्यो रे, क्या करेगा मशीन का ?”! “वह, वह जा माँ है न । उन्हने मगाइ है ताई | मुन्री की ग्रौर गुटडू को वनियान-जाँघिया सोएँगी 1' “इतनी धूप भ ? वला की ता गर्मी है। भला यह क्या टाइम है कपड़े सीने का ? सुबह से क्या कर रही थी ?”” * सुबह तो खाना बना रही थी । मिस्सर जी तो चले गए न ।”/ £ আই হাঁ, मैं ता भूल गई थो 1 रज्जो वेट भला यह भिस्सर का मयो निकला उसने ? क्वसेतो था पडा रहता ।” पना नही, ताईं ।'




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