प्रबन्ध पूर्णिमा | Prabandh Purnima
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धरित्रयल आर विवाह ।
वी कवचने ^>
शुके समी दितेषियों को इस बात से अवश्य
द् 6 दुःख है कि इस समय भारतवर्ष में व्यक्ति
गत ओर राष्ट्रीय दानो प्रकार का चरित्रवत्य
इतना कम दे कि हम लोग अपनी निजी
क्षति अथवा जातीय उद्धार के लिये सफलता की आशा से
कार्य नहीं कर सकते | इस सम्बन्ध में चरित्र शब्द से में उन
गुणों का निरंश नहीं करता जिनसे सदाचार, विनय, सत्यता,
दानशीलता, अदिसा आदि का बोध हो । इस प्रकार के गुय
तो एक तरद्द से बहुत हैं। चरित्र से हमारा रथै यह भी नीं
हे कि खरी पुरुष के कामसम्बन्ध मे पवित्रता हो। यष्ट भी
अपने देश में अन्य देशों से अधिक नहीं तो कम भी नहीं है ।
चरित्र बल से हमारा अर्थ यह है कि हम लोगों को अपने कर्म
में ततपरता और रढ़ता दो, हम लोगों में वद शक्ति दो जिसके
कारण हम अपने २ कार्यों को किसी सीमा तक पहुँचा सक।
चरित्र से हमारा अर्थ उस आ-मवल से हे जिसकी सदायता
से हम झपने २ काय विशेष में तन, मन, धन से लगे रहते
है. और इसका विचार नहीं करते कि श्रोर लोग क्या करते है ?
प्रायः यद देख ने में आता है हम लोग अपना कार्य थोड़ा
भी विरोध दोने पर छोड़ देते हैं। यदि किसी ने कुछ भी
हमारी हसी की या अन्य बाधा के उपस्कित होने पर निरु-
त्सादी हुए, तो हम लोग अपना मन उस काय॑ से हटा लेते
हैं। यदि किसी अंश में भी विफल हुए तो हम पीछे हट जाते
हैं। इन्हीं सब कारयों से हमारी सावंजनिक अथवा ब्यक्ति-
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