वन्देमातरम का इतिहास | Vande Matram Ka Itihas

Vande Matram Ka Itihas by विश्वनाथ मुखर्गी - Vishwanatha Mukherjee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भवत्तरण / १७ सती-प्रथा का प्रचलन था । फलत पति की चिता पर जबरन उसे जीवित जला दिया जाता था । ढोल-तगाडे की आवाज में उसका करुण-क्रदन हमेशा के लिए डूब जाता था । अगर कोई लडकी चिंता पर से भागने की कोशिश करती तो उसे पानी में डुबाकर या जमीन मे गाइकर मार दिया जाता था । अगर कोई सती होने से इनकार करती तो सारा जीवन उसके साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया जाता था । बीमार पड़ने पर बहू अपने भाग्य के भरोसे जीवित रहती थी । शादी-विवाह जैसे उत्सवों में वह शामिल नहीं हो पाती थी । यहां तक कि लोग सुबह उठकर उसका मुख-दर्शन अशुम समझते थे । सपत्ति पर उसका कोई अधिकार नहीं होता था । यहां तक कि उसके बच्चों को भी छल-कपट के जरिये संपत्तिह्दीन कर देते थे । उन दिनों बंगाल मे महिलाओं की क्या स्थिति थी इससे स्पष्ट हो जाता हैं भौर भाज भी इनमे से कुछ भ्रथाएं विद्यमान हैं । बंगाल की महिलाओ की वास्तविक स्थिति का चित्रण महाकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर से लेकर प्रमथनाथ बिशी के उपन्यासों तक में अनायास मिल जाता है । कुलीन कन्याओ के विवाह न होने पर जिन समस्याओं की सृष्टि होती थी उनसे बचने के लिए उन कन्याओं को विप द्वारा मार डाला जाता था । जांच-पड़ताल तथा पुछताछ से ज्ञात हुआ कि उनके अपने गाव मे दस च्षें की अवधि में ३०-३९ कुलीन कन्याओं की विप द्वारा हत्या की गई है और उन हत्यारों ने कानून से बचने के लिए ऐसा प्रचार किया कि उन कन्याओं की मृत्यु हैजा से हुई ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन प्रारंभ होने के पूर्व तक हमारा देश सोया हुआ था | देश को इस सुप्तावस्था से सर्वप्रथम राजा राममोहन राय मे जगाया | फलत उन्हें विचारकों ने फादर आफ माडर्न इंडिया कहा । झ्रंघकार से प्रकाश की श्रोर ब्हाट बेंगाल थिक्स टू डे इंडिया ऐक्ट्स टूमारो अर्थात्‌ बंगाल के आज का चितन भारत के कल का कार्य है | बंगाल के संबंध में यह थिचार कई दशाब्दी पूर्व पूज्य लोकमान्य तिलक ने ध्यवत किया था । उनका यह उद्गार भावुकतावश नहीं दिया गया था घल्कि तत्कालीन बंगाल की मूमि में हुए महान प्रतिभाओं की कार्य-प्रणाली और उनके चिस्तन को देखते हुए उन्होंने नि कट १. राजा राममोहन राव द्विशत॑. जन्म वाधिकी समारीद समिति बिहार पटना प्रथम संस्करण पृष्ठ ८-६-७१ ही रे. तत्व कौमूदो साधारण द्रह्मा समाज बलकतता १६४१ पृष्ठ




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