दूसरा सप्तक के कवियों की काव्य भाषा | Dusra Saptak Ke Kaviyo Ki Kavya-bhasha

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Book Image : दूसरा सप्तक के कवियों की काव्य भाषा  - Dusra Saptak Ke Kaviyo Ki Kavya-bhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आगे वे लिखते है-- “भारती का मन कविता मे ही रमता है। क्योकि कविता के माध्यम से ही भारती आज की बेहद पिसी हुई सघर्षपूर्ण, कटु और कीचड मे बिल बिलाती हुई जिन्दगी के भी सुन्दरतम्‌ अर्थ खोज पाने मे समर्थ रहा है। कविता ने उसे अत्यधिक पीडा के क्षणों मे विश्वास और दृढता दी है। कविता भारती के लिए शान्ति की छाया और विश्वास की आवाज रही है। बचपन मे जबसे उसने अँगरेजी सीखी तभी से वह समुद्री कविताओ, साहसी नाविको और समुद्री लुटेरो की कहानियो के पीछे पागल रहता था। जब उसकी चेतना ने पख पसारे तब छायावाद का बोल बाला था। उसे लगा कि कविता की शहजादी इन अपार्थिव कल्पनाओ, टेढे-मेढे शब्द जालो, अस्पष्ट रूपको और उलझे हुए जीवन-दर्शन की शिलाओ से बधी उदास जल-परी की तरह कैद है ओर भारती को चाहिए कि वह उसे उन्मुक्त कर सर्वथा मानवीय धरातल पर उतार लाये ताकि वह फेली-फेली ्चोदी की बालू पर आदम की सन्तानो के साथ बेहिचक आख লিজীলী खेल सके, उन के सीधे-साधे सुख-दु ख, वासनाओं कामनाओं को समञ् सके, उन्ही की बोली मे बोल सके इसलिए भारती ने सबसे पहले लिखे सरलतम भाषा रग-बिरगी चित्रात्मकता से समन्वित साहसपूर्ण उन्मुक्त ॒रूपोपासमा ओर उद्दाम यौवन के सर्वथा मासलगीत, जो न तो मन की प्यास को झुठलाये और न उसके प्रति कोई कुण्ठा प्रकट करे, जो सीधे ठग से पूरी ताकत से अपनी बात आगे रखे । आदमी की सरल ओर सशक्त अनुभूतियो के साथ-साथ निडर खेल सके, बोल सके | यो कविता मे भारती के पास तूलिका है ओर वह तारो से रोशनी ओर फलो से रग चुरा कर बात-बात पर चित्र बनाती चलती है। शायद उस की कविता-शैली पिछले जन्म मे मिश्र देश की राजकुमारी रही होगी, जिनकी लिपि का हर अक्षर ही एक सार्वांग-सम्पूर्ण चित्र होता था। लेकिन भारती को इस बात का ध्यान रहता है कि उस के चित्र आपस मे उलझने न पाये और कुल 15




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