गल्प माला भाग १ | Galp Maalaa Bhaag 1

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Galp Maalaa Bhaag 1 by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ | हो जाता है पर वह जानने वालों को साफ़ नज़र आजादा है । अकसर लेखक तौहीन के अभियोग या मित्रों की नाराज़गी के भय से अपने चरित्रों को इतना तोड़ मरोड़ देता है कि उनमें असलियत का केवल बीज मात्र रह जाता है। बहुधा लेखकों को दूसरे लेखकों के चरित्रों से नए चरित्र बनाने पड़ते हैं । बड़े बड़े लेखकों ने इस भाँति दूसरों के चरित्रों को अपनायाँ है। अकसर पुराने कथा-प्रंथों से ऐसे प्लाट मिल जाते हैं जिन्हें नए साज़-सामान से सजा कर बहुत मनोरंजक बनाया जा सकता है। हाँ, यह समझ लेना चाहिए कि प्लाट कदी बिलकुल बना बनाया तैयार नहीं मिलता । लेखक की कल्पना कहीं उसमें अपनी इच्छा या उद्देश कै श्रनुसार उलट पलट कर जिया करती है । श्रकसर जहां प्लाट की आशा कीजिए वहाँ नहीं मिलता । युरोप के और भारतवर्ष के भी कुछ लेखक अपने साथ नोट-बुक रखते हैं। उसमें वह श्रपने अनुभव, अनोखे चेहरे, चुभने वाले दृश्य, या गँवारों की बोलियाँ लिखते जाते हैं। अवसर पड़ने पर इन चीज़ों से उन्हें काफ़ी मदद मिलती है। लेकिन अभ्यास के बाद लेखक को नोट-बुक रखने की जरूरत नहीं रहती । उसका सस्तिष्क काट छांट का काम आप कर लेता है और हरेक चीज़ अपने स्थान पर आप ही आप पहुँच जाती है और सौके पर आप ही आप निकल भी आती है । जासूसी कहानियों के विषय में में एक असिद्ध जासूसी लेखक जी, के, चेस्टरटन की सम्मति आप को सुनाता हूँ जिसका तात्पय यह है कि विचारावली सदेव आगे बढ़ते हुए क्रम से आवे, प्रत्येक विचार कुछ न कुछ




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