हनुमच्चरित्र | Hanumchharitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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उनकी पूँछ में आग लगा दी गईं, जिससे उन्होंने सारी ढूका
की दोली जला दी | यदि हम यहाँ पूँछ विषय को छोड़ जाव
तो बहुत कुछ घटना छूट जाती है और यदि मन-गरटंत कथा
बनाकर लगा दें तो भी अनथथ ही होता । कई विद्वानों ने “डॉगूल”
शब्द् का अथं पुटं न करके “एक प्रकार का आभूषण किया
है । यह आभूषण विशेष वानरवंशीय छोगों को अधिक प्रिय
होता था| कुछ छोगों ने “लाँगूछ” का अथे “कर-कंकण” किया
है । रावण ने कहा था--
“कपीनां किल लागूलमिष्टं भवति भूषणम् ।
तदस्य दीप्यतां शीघ्रं तेन दग्धेन गच्छतु ।'
( वारमीकि सुंदरकाण्ड )
इस श्लोक का “भूषण” शब्द लेकर लांगूल को भूषण सिद्ध
करने का प्रयत्न करते हैं । परन्तु इसे हम जोरदार प्रमाण नहीं
कह सकते । यदि यह कद्दा जाय कि “मोर की शिखा उसका
भूषण है ।” तो इससे यह सिद्ध नहीं हो सकृता कि मोर-शिखा
मोर के पास कोई जेवर है। यह विषय बड़ी ही उलझन ओर
झंझट का है। दोनों पक्षों के पास अबल प्रमाण हैं किन्तु हम
यहाँ दोनों का युद्ध कराना नहीं चाहते । जहाँ लांगूल शब्द् मिला
वहाँ हमने लांगूल लिख दिया ओर जहाँ पुच्छ शब्द मिला वहाँ
पुच्छ लिख दिया | हमने इस झगड़े को निपटाना अपनी शक्ति
के बाहर देखकर इसमें हाथ ही नहीं डाछा । क्योंकि महाभारत वन
पव के १४६ वें अध्याय से “भीमसेन से भेंट” नामक जो कथा
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