गगनाच्चल | Gagnacchal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन की रचना है आत्मकथा 15 संबंध का संकेत देती है तो दूसरी ओर आत्मकथा के संदर्भ ओर संरचना का आमतौर पर उपन्यास के साथ লাজাল্য स्थापित किया जाता है। एक ओर उसे व्यक्ति-इतिहास माना जाता है ओर दूसरी ओर उसे व्यक्ति द्वारा रचा गया साहित्य । यहं कई सवाल उठते हे । क्या इतिहास की कालानुक्रमिकता आत्मकथा मे बरकरार रहती दै? दो, व्यक्ति-जीवन से संबद्ध घटनाएं क्या हूबहू उसी रूप में इस्तेमाल की जाती हैं? अगर यह सही है तो क्या उसे हम साहित्य कह सकते हैं? क्योंकि घटनाएं जब तक कहानी नहीं बनतीं यानी वस्तु जब तक विभाव नहीं बनती तब तक उसे हम साहित्य नहीं कहते। ओर फिर यदि ऐसा होता है तो आत्मकथा की सत्यता कहां रही? आत्मकथा ओर आत्मकथात्मक उपन्यास में निश्चय ही कहीं अंतर जरूर होता होगा। तीन, आत्मकथा की वर्णनात्मकता क्या ऐतिहासिक यथार्थ है या व्यक्तिगत तथा सांस्कृतिक यथार्थ यानी क्या यह अनुभवात्मक (&)(07777/0७79/) यथार्थ है? इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सन्‌ 1912 में रचित रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 'जीवन-स्मृति' का संदर्भ उठाया जा सकता है। “जीवन स्मृति' में रवीन्द्रनाथ ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि आत्मकथा हूबहू जीवन की नकल नहीं होती । आत्मकथाकार अपनी अभिरुचि के अनुसार काफी कुछ छोड़ देता है ओर काफी कुछ रखता है। कितने बड़ों को छोटा बना देता है और छोटों को बड़ा। वह आगे की चीज़ को पीछे ओर पीछे की चीज़ को आगे ले आता है। वस्तुतः उसका काम चित्र बनाना है, इतिहास लिखना नहीं। इस तरह जीवन के बाहर घटना की धार बहती दिखाई पड़ती है ओर भीतर चित्र आंकना चलता रहता है। दोनों के भीतर एक संबंध है मगर दोनों ठीक एक नहीं। दरअसल व्यक्ति-लेखक के जीवन से संबद्ध कालानुक्रमिक इतिहास किस प्रकार कलात्मक अभिव्यक्ति होकर सांस्कृतिक क्षणों को प्रकट करता है वही आत्मकथा निर्धारित करती है। संरचना की दृष्टि से दस में से नौ आत्मकथाए्‌ स्मति चारण की आकारहीन असंबद्ध अभिव्यक्ति होती है अथवा कालानुक्रमिक व्यवस्था का वैश्विक इतिहास होता है । उनकी बात यहो नहीं उठाकर उन व्यावसायिक लेखकों की बात करना ठीक रहेगा जिनके लिए आत्मकथा रूप (०77 से जीवन मे अवतरण है जैसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर अथवा अमृतलाल नागर या जोश मलीहाबादी या फिर कर्मयोगी शौकीन लेखकों की बात की जा सकती है जिनके लिए आत्मकथा जीवन से रूप मे आरोहण हे जैसे महात्मा गाधी की आत्मकथा, सत्य के प्रयोग । लेखक रूप (तग) को छोड नहीं सकता । ओर कर्मयोगी जीवन को त्याग नहीं सकता हालंकि जीवन से लेखक गुह बाये नहीं रहता । लेखक के अनुभव (वस्तु) तथा भाषा में उसकी अभिव्यक्ति (चित्र) आत्मकथा मे सह-विस्त॒त (06९119५९) होती है । लेखक की आत्मकथा शिल्प ओर प्रयोग है ओर कर्मयोगी के लिए जीवन का इतिकृत्त है । एक के लिए कला जीवन का निर्माण करती है ओर दूसरे के लिए जीवन से कला निर्मित होती है । कला जीवन का निर्माण करती है जैसे वाक्य समस्यात्मक (17001611900) है । घटनाएं जब तक कहानी नहीं बनती




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