श्री आचारंगसूत्र | Shri Acharangsutra Hindi Ansh-2

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Shri Acharangsutra Hindi Ansh-2 by दुर्गाप्रसाद - Durgaprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आचांराग चूत ( ६) पांचवें श्रध्याय में लोक में से सार खंचने की सूचना दो है, परन्तु जहां तक चित्तवृत्ति षर कुसं स्क्रारों का जोर रहता है चित्त को मलिनता रहती है वहाँ तक सार किस प्रकार खेंचा जाय ? चरित्र गठन किस तरह से हो ? अभिमान और मोह के बुरे प्रभाव से क्रिस तरह पीछा छूटे ? और स्वच्छन्दता से दूर कंसे हा जा सके ? इसलिए सूत्रकार इस प्रध्ययन में चित्त शुद्धि के उपाय बताने का प्रयत्न करते हैं । धूत धो डालने को कहते हैं। जिस प्रकार वस्त्र को किसो रंग से रंगने के पहले उश्चके पहले के लगे रंग को दूर करना पडता है और उसके दूर होने क बाद ही दूसरा नया रंग चमक उठता है। ऐसे ही जब चित्त पर से मलिनता के लगे हुए संस्कार दूर हो जाये, तब ही नवोन संस्कार सूरेख वन सक्ते है । ग्रन्यथा एक या दूसरो रीति से पूर्वे श्रध्यास बीच में दखल दिए विना नहीं रहते । इस रीति से सबसे पहले साधक के लिए चित्तशुद्धि की क्रिया अनिवार्य बन जातो है। इस क्रिया को जैन दर्शन में संवरकरणी में स्थान प्राप्त है ।




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