जैन धर्म में शासन देवताओं का स्थान | Jain Dharm Me Shashan Dewtaon Ka Sthan

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Jain Dharm Me Shashan Dewtaon Ka Sthan by वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री - Vardhaman Parshvanath Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्षधमेमे शासनवेवताधोंका स्थान..__ রি १७ (१) पूजा शका क्या अथं हं ? । यह सब विवाद पूजा शब्दके अर्थकों ठीक ने सममनेके ` हारण उपस्थित हुए हैं। पूजा करनेकी अर्थ अप्टद्रव्यसे 'अरहँत भगवेतकी जैसी पूजा की जाती है उसीप्रकार अन्यं देवीदेवठा- ब्ॉंकी भी की जाती है, इस तरह लेनेके कारण उपस्थितः होते हैं । शांसनदेवत्तावोंकी पूजा करनेवाले कोई भी. ऐसा अर्थ नहीं करते हैं, शासनदेवता--पूजाका विरोध करनेवाले मात्र उस प्रंकार अर्थकर लोगोंपर व्यर्थ आरोप करते हैं । : लोकमें हमसे जो गुरोंसें श्रंप्ठ हैं ऐसे भगवान्‌, गुरु, सोता पिता) ज्येप्ठवंधु, वृद्धजन' आदि'हमारे लिए पूज्य होते हैं, अर्यात्‌ उनको हम पूजा करते ट. उन सवके ` सामने जाने-- पर हमारे हृदयमें एकसदृश पूंजाके भाव उतंत्न नहीं होते हैं, जैसे जैसे हमारेः लिएं वे पूज्य हैँ उसी प्रकारके परिणाम हमरे हृदयम उत्पन्न होते हैं, परन्तु सबके लिए पूंजा सामान्य शब्दका ही: प्रयोगः किया गयो है. इसका सीधा अं है. कि पूजा तो अवद्य करें, परस्तु यथायोग्य. पूज्य पात्रको देखकर परिणाम भी उसी प्रकार होता ही है । उदाहरण के, लिए हमे यहांपर एक विंपय उपस्थित करते हैं। पात्रोंके तीन. भेद है, उत्तम, मध्यम, व ज़धन्य, इन-तीनों पात्नोको नवधांभवित करनेका विधान । ग्रन्यकराररनि क्रियां दे।यथा--;. , -,. द :;, ्तिगरहोच्चासनपा्यपूनाः परमवावकायमनःप्रसादाः | , विधाबिशुद्धिश्व नवोषचाराः कार्या सुनीन गृहमेधि, ।। । ` --दान॒लासन-वासुपज्य १४ इसमे पूजा ाब्द भाया ह, मरथेदि तीनों ही पा्नोक्री पूजन करना आवश्यक हैं । कया. तीनों. ही पात्रोंकी पूजन एकसरीखी हो सकती है या होगी? कभी नहीं. परिणार्म एकसंरीखां नहो




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