कृष्णानायन | Krishnayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
941
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~+ + ध गं [ ९ | বত
की सहज ही याद श्रा जाती है। और अ्रत्याचार-पीढ़ित निरस्र निःशख प्रजा-
जन ऐसे अवसरों पर फ्रिस प्रकार अ्र्मपरित्राण और अत्याचार-निवारण में
सहायक हो सकते है तथा वैसे यल प्रा कर सकते है, त सुका भी यथेष्ट,
निर्देश कवि ने कर दिया है। कंस के बध के पश्चात् হী वंदीग्द् दूरत की
घटना फ््स की क्रान्ति के समय 'वासील' के पतन से मिलती-जुलती है 1 कवि
के ये शब्द मार्मिफ हैं--
घरि पदु राजद्रोह-प्य माहं,
सक स्मदि पाच छोड नारी ।
भारत में चक्रवर्ती राज्य स्थापित करने फे लिए सुदद बेन्द्रीय शासन की
अ्रावश्यकता है; इस भावना को भी ययेष्ट रूप में कवि ने सामने खड़ा किया
है। कृष्ण की अ्रवन्ति-यात्रा के जनपदौ के स्थलों, वनों और पव॑तों के बहुतेरे
सुन्दर चित्र उपस्थित किये गये हैं जो पढते ही बनते हैँ । उज्जैन में सान्दीपनि
गुर के पास गुरुकुल में कृष्ण और बलराम के अध्ययन के वर्णन के सिलसिले
में प्राचोन गुरु-शिष्य-सम्बन्ध श्रौर अक्षचये के आद्शों का अच्छा वर्णन है ।
राजनीतिक सिद्धान्तों की चर्चा तो बराबर मिलती है। गुरु-दक्षिणा रूप कृष्ण -
ने गुरुपली की इस इच्छा की पूर्ति, कि उसका एकलौता पुत्र जो कि कभी समुद्र-
स्नान॑ के समय लुप्त हो गया था लौटा लाया जाय, अपने अलौकिक चमत्कार से
की है । इसी प्रकार का एक चमत्कार शआ्आागे चलकर श्रारोहणकाण्ड में मत
.शिशु परीक्षित को फिर योग द्वारा जिला कर किया है |
तुतीय ( दास्का ) काएड में कृष्ण और यदुवंशियों का मधुरा छोड़कर
द्वाएका चले जाने और वहाँ असुरों के त्रास से बवकर घन, जन, शक्ति दकु
करके मारतवर्ष से असुरों के आतक को हटाकर फिर शआआआर्य-धर्म, संस्कृति और
साम्राज्य के स्थापितृ करने के उद्योग का विशद वर्णन है। बम्बई को आधु-
নি “भारत का द्वारा समझे जाने की भावना को कवि ने द्वारका पर घटित
किया है और द्वारका को भारत का द्वार मानकर उसकी अत्यावश्यक रक्षा पर
ज़ोर दिया है। कराँची और बम्बई की भाँति द्वारका को विदेशी यातायात का
केन्द्र भी वताकर कवि ने द्वारका को वैभवशाली नगरी माना है । चारों श्रोर
समुद्र से घिरी हुई द्वारका की प्राकृतिक और कृत्रिम सुन्दरता का वर्णन बड़ा
सजीव है] समुद्र केः विविध दृश्यों का वर्सशन कवि उसी आत्म-विश्वास से
ऋकश्ता है जिससे फ्रि स्थल का। समुद्र के अन्दर फे इश्यों की अत्यंत सुन्दर
और वैज्ञानिक कल्यना का समावेश लेखक ने कौशल से पिछले काएड में ही
क्र दिया दै। युवा कृष्ण के रुक्सिणी-परिणय, जाम्बवन्त कन्या का परिणय,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...