देवी द्रौपदी | Devi Draupadi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७ ट्वितीय-परिच्छेद ।
हे শপ ললিপপ न्व
यह देख अज्ु न जरा मुस्कराये ओर उन्होंने कहा--आपलोग
एक ओर खड़े होकर तमाशा देखिये। मेँ स्वयं सब काम करता हूं ।
महातेजस्वी कर्ण अजु नसे भिड़ गये ओर मद्रराम शल्य भीम
से ! अञ्जन अपने विकट वा्णोकी कर्णपर वर्षा करने खगे । उनके
तेज बाणोंकी मारसे कण्कि नाको दम आ गया ।
कर्णने कहा--हे ब्राह्मण, तुम्हारा बल, अस्त्र चलानेकी योग्यता
ओर शीररकी हृढ़ता देख में बड़ा प्रसन्न हुआ। मुझे जान पड़ता
है कि तुम स्वय॑ धनुर्वेद हो | मुझे क्रोध आनेपर स्वयं इन्द्र या कुन्ची-
पुत्र अजु नको छोड़कर अन्य कोई मेरा सामना करनेवाला नहीं है ।
अज्जु नने कद्दा--में न तो इन्द्र हूं, न धनुर्वेद। में अस्त्र विदा
जाननेवाखा एक ब्राह्मण हँ । तुमको हरानेके छिये ही में युद्धके
` मैदानमे माया हं । यह बातत सुनते ही कर्णने ब्रह्मतेजकी प्रधानता
मान ली ओर युद्धसे अपना पीछा छुड़ाया ।
इधर भीम ओर शल्यमें छात मू कोंसे बेढब छड़ाई हो रही थी।
अन्तमें भीमने एक ऐसा दांव चलाया कि शल्य चारों पांव चित्त
जमीन पर गिर पड़े । शल्य छज्ित हो गये ओर हार मान डी ।
यह देख मौर राजा रोग डर गये । उनका साहस न हुआ कि वे
युद्ध करे ।
राजकुमार छोग आपसमें बातचीत करने छंगे--ये ब्राह्मण-कुमार
हैं कोन ? किसके लडके हैं ? कहांके रहनेवाले हैं ? आदि बातें
मालूम नदीं होतीं। ये बातें जाननी आवश्यक हैं ।
इधर कऋष्णने भी मोका पाकर कहा--हे नरेशगण, ब्राह्मण कुमारने
धमेसे राजकन्याको पाया दै । आप छोग शान्त हों । युद्धकी आव-
श्यकता ही कया है ? अन्तमं सबने यद्ध॒ करनेका विचार छोड
{या ओर सवने अपने अपने घरकीरा ली । / /
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