आन्तर जीवन | Inner Life

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Aanntar Jeevan by सी. डब्ल्यू. लेडबीटर साहिब - C. W. Leadbeater Sahib

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) विकास क्रमों में सहायता देने के लिये जने ऊ सक्तं दुष्ट । पर उनसे के एक श्रव भी हमारे यहां के प्रति उच्यपद्‌ पर विराजमान हैं | इस पृथिवी के सब विकास की व्यवस्था इसके हाथ में हे, मनुष्य फा विकास ही नहीं; बरन पश्ुु, वनस्पति, खनिज ओर उसके नीचे सोतिकसर्ग ओर सब छोटे बड़े देव- वर्गो के विकास की व्यवस्था भी ये ही करते हैं। केई २ देववर्ग मचुष्य से बहुत ऊचे है । इनके अधिकार के नीचे कई महकमों के अधिकारी कार्य करते हैं जिनके कार्य का कुछ २ हाल हसलेग इनके कार्य की अपेक्षा विशेष समझ सकते हैं। जैसे घूल्र जाति के भछु की क्रिया का विधिवार हाल समझना ते हमारी शक्ति के बाहर है पर हम छुछ २ यद् समस्त सकते हैं कि नई जाति के बनाने मे मञ्जी का कितनी २ अड़चने उठानी पड़ती हैं। इसी परदार हम इस भूलोक के धांधिपति की क्रिया की भी कटपना किसी कद्र कर सके है । इस खंलार में जहां जैसे धर्म की आवश्यकता पड़तो है, वहां ये वैखा धमं प्रचार करते है! कभी उस काये के लिये आवश्यकतानुसार अपने किसी शिष्य के भेजते हैं या कभी वे स्वयं जन्म लेते हैं । इन्हें पूर्वीय देशों में वहुधा वाधिसत्व कहते हैं अर्थात्‌ जो बुद्ध होने बाले हैं. ओर: श्रभी उस पद को प्राप्त होने की तय्यारी करते हैं। हाल में इस पद्‌ पर श्री मैचेय ऋषीश्वर स्थित हैं, इलले पूर्वं उख उच्छ पद्‌ का वे धारण किये हुए थे जिनके हमलेग गैदम बुद्ध कते है । पूर््ञान भासत कर लेना ही बुद्ध पद्‌ के प्राप्त होना




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