मिस्टर व्यास की कथा | Mistar Vyas Ki Katha

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Mistar Vyas Ki Katha  by शिवनाथजी शर्मा - Shivnath Ji Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय प० रिषनाय शर्माजी का जन्म कारी ऊ गदवासीरोला महच्च मे, फास्गुन-बदि ११, संचत्‌ १६२४ दवि० में, हुआ था | आपके पिताजी फा नाम पं० दामोदर शर्माजी था। श्राप सारस्वत ब्राह्मण हैं । आपके पिताजी वेदपादी और कर्मकांडी थे । ज्योत्तिप भी अष्छी जानते थे । शिवनाथजी ने आरंभ में गुरुजी के यहाँ साधारण हिसाब-कित्ताब की शिक्षा पाई। उसके बाद जखनऊ के स्वनामधन्य विद्दददर स्वर्गीय पं० क्लनेश्वरजी से श्रापने संस्कृत का श्चप्ययन क्रिया । कारण, श्राप घाल्यकाल ही से जखनऊ हरा गए थे। लखनऊ के क्रिश्चियन- कॉलेज में ्ंगरेज़ी की शिक्षा पाते रहे, और वहीं से बी० ए० पास किया | श्रापको पिद्याध्ययन का व्यसन वरावर रहा, श्रौर वह श्रव सक जारी है। संस्कृत के पदकाव्यों का आपने প্রহরী বে গন शीलन किया है। अँगरेज़ी के प्रायः सभी प्रधान और प्रसिद्ध कवियों फी रचनाएँ आपने पढ़ी, हैं । उनमें शेक्सपियर, मिल्टन और वायरन के श्राप विशेष भक्त हैं। श्राप उदफ्राससी भी जानते हैं, भ्ौर उन भाषायों के कवियों की रचनाएँ भी आ्रापने अच्छी तरह पढ़ी हैं । द्विंदी किसने का भ्रापको लद॒कपन से दी शौक़ रहा । कॉलेज में दाखिल होने के पहले दी आपने रसिकर्पथ नाम का एक हिंदी-पतन्न मिकाला था। पर वह दो साल तक निकलकर बंद हो गया । इसके बाद कन्नकत्ते से प॑० सदानंद मिश्रजी के संपादकत्व में निकलनेवाले साप्ताहिक पत्न 'सारसुधानिधि! में श्राप लिखने लगे। उसमें चाढु- चार्ता-शीर्षक से आपके हास्य-रस से शरायोर लेख निकलते थे । उस खमय उन लेखों छी वदी धूम भी । लोग उन्हें बड़ी रुचि षुं




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