भगवद्गीता | Bhagwatgita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
524
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्वात, ] आनंदगिरिकृतभाषायेका । (११)
रण जो केवठ्ञाननिष्ठा उसका वणेन है. ओर ज्ञाननिष्ठाका उपाय
ड कमनिष्ठा गे পাস ধনী ৮
, उपासनाका तभोव है. प्रथमके छः
कृमकांडका वर्णन है, ओर सातं अध्याये वारक उपा
नाका वर्णन है. ओर तेरसे अगरःतक ज्ञाननिष्ठाका निरुपण
है. केसे बेढोंमें कर्म उपासना ज्ञान तीन कांड ई. पदी गीतानि
तीन कांड हैं. ये तीनों कांड परस्पर पपिक्ष ६ अथात् तंत्र
ये तीनों मुक्तिके कारण नहीं, कृपंतो उपासनाज्ञानकी अपेक्षा रखता
है, ओर उपासना प्रथम कमेकी भोर फिर ज्ञानकी भपेक्षा रखता
है. भर ज्ञान प्रथम कम और उपासना इन दोनोंकी अपेक्षा रखता
है, कर्म करनेसे अंतःकरण शुद्ध होता है. उपासनासे चित्त एक
होता है. फिर ज्ञानद्वारा मुक्ति होती है इस সন্ধা ये तीनों कांड
परस्पर सिक ई. इद् कम सुय कहते है. समपय इद
समझना न चाहिये क्योंकि एककालमें एकपुरुषसे कनिष्ठ ओर
ज्ञाननिष्ठा इन दोनोंका अनुष्ठान नहीं हो सक्ता, इनकी स्थितिगति-
वृत् विरोध है. कृतों और अकतोभी एककाहमं केता समझा जाये.
ताले यहरहे कि प्रथम कर्मनिष्ठा मुख्य ररतीहे ओर ज्ञाननिष्ठा गोण
जब कमनिष्ठा परिपाक होनाततीहे तब ज्ञाननिष्ठा मुख्य हो जाती है.
जोर कनिष्ठा गोग किर जञाननिषठाप्रिषाक होकर समस्त इव
मख्के सदित नाञ्च कफे परमानंद प्रप्र कर देती है. पव पत
महंत महात्मा बेद्शा्लोंका यही तिद्धांत है. यह नियम है कि महा-
वाक्याधज्ञानके बिना मुक्ति कभी नहीं होती है भोर महावाक्यार्थ
का ज्ञान तब होता है जब प्रथम पदाथ्ंका ज्ञान हो गावे. गहावा-
क्यमें तीन पद हैं तत् ३ त्वम २ अत्ति ३ तत ओर लग इन दो
पोका जथ वाच्य भोर ठ्य भदे दो दो प्रकारका ६. शरीभगव-
है [तामें विचारना चाहिये कि पहावक्याथं कित प्रकार भर कह
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