महाभारत वनपर्व | Mahabharat Vanparv

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Mahabharat Vanparv by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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২৯ রি রেট ০8-4-৪ এরর এর ৪৮১১ এ: এসএ: ৯ পো झध्याय ] ॐ भाषाञ्ुवाद सहित # (१०२४ ) नने रम्ये तयेव सह व्यवाहरदथ चत्तष्णार्दितः श्रान्तो5तिमुक्त- ॥ कागारमपश्यत्‌ ॥ १६ ॥ অত प्रविश्य राजा सह प्रियया. सुध।- । कृतां विमलां सलिलपू्ा वापीमपश्यत्‌- ॥२०॥ दृइ्ट व च ता # तस्याश्र तीरे सहैब तया देव्यावातिष्ठत ॥ २१॥ अथ तां देवीं ॥ स राजात्रवीत्‌ साध्ववतर वापीसलिलमिति | सा तद्गचः भ्रुत्वा- ( वतीयं वां न्‍्यमज्जन्त पुनरुदमज्जत्‌ ॥ २२॥ तां स मूर्गयमा- ; णो राजा नापश्यद्वापीमथ निःस्ताव्य मण्ड्क श्वश्रसुखे दृष्ठा कुद | आज्ञापयामास स राजा ॥ २३ ॥ सवंत्र मण्डकवधः क्रियतामिति- | -यो मयार्थी स मां मतमणड्कोपायनमादायोपतिष्ठेदिति)॥ २४-॥ | श्रय मण्डूकवधे घोरे क्रियमाणे दिज्ल सर्वा मण्द्कान्‌ भयमा्वि- । के साथ रमणीय वन में गया और विहार करने लगा,एक समय & उसको भूख ओर प्यास लगी उसकी पीड[से वह थक गया था इततेमें उसक्रो. वासंती लताका मण्डप दीख़ा ॥१६॥. तेव वह | ू , अपनी प्रियाक्रे साथ उस वांसंतीमएडपमें गया और तहां उसने चूने £ । से पुती हुईं निमेल नलसे भरीहई. एकं वावदी देखी ॥२०॥ उस वावदीको .देखते दी .राजां.उसःरानी.सदित वावृ्ीकरे तट पर जाकर ( खड़ा हुआ और उसने रानीसे कहा कि-देवि! आहा कैसी अच्छी 7 वावढ़ी है तू इस মানবী जलमें जनतर॥२१॥ रानी राजाके फहने है को सुनकर. वावड़ीमें उतर पढ़ी ओर उसने जलमें गोता . लगाया. | परन्तु वह फिर जलमेंसे वाहर न निकली.॥ २२ ॥राजाऩे वाव- £ | डीके जल. में उसे. व्रहुत दूंढा परंतु वह न्‌ दिखाई दी, तव उसने | | वावडीका जल उलिचां दिया. ओर फिर देखा तो उस, वाबढ़ी ॥ † में एक विलके भीतर एक मेंडकक़ों ही पायां उसको देखकर रा- ॥ । जांफो- क्रोध आगया . र -राजाने शज्ञा, दी कि~॥.२३ ॥ | সি दिगो, | जहां,२ मेंढक हों तहां २ सब स्थानोंमें उनका नाश करो, त॑था | जिसका मुझसे कुछ काम हो .वह भी मरेहुए मेंडककी भेंट लेकर. &। ` ¢ सामने आरे ॥ २४.॥ राजाकी आज्ञा होने पर मेडकोंका মহাম- 7 পক যন্ত্র নবান্ন ই शद ^: ~




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