अनुभवप्रकाश | Anubhavprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूगह्ाम्‌ शी कुन्दकन्द-कहान जैन शास्त्रमाला पुष्प-दर ৬ | अ नमः री -कनदरपचन्दनी शद ( काशलीवाक ) छत. अनुभव प्रकारा রা (क मृदा चरण गुण अनन्तमय परमपद, श्री जिनवर भगवान्‌ । ज्ञेय ऋलखत हैं ज्ञानमें, अचछ सदा +निजथान [1१1 परमदेवाधिदेव परमात्मा परमेश्वर परम पूज्य जग अन्नपम आनन्दमय अखण्डित भगवान निर्वाणनाथको नमस्कार ` करि अनुभय प्रकाश ग्रेथ करों हों, जिनके प्रसादतें पदार्थकाः / स्वरूप जानि निज आनन्द उपने । प्रथम यह खोक पढृद्रव्यका वन्‍्या है। तामें पशण्छ: के मु० लस्य) ~ मु० प्रतिमें ' निजथान ” के स्थानमें “निजस्थान ” কৃত दिया है जिससे छन्द मङ्कु हो जाता है। ८ क. अनुभो ।




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