श्री समयसार नाटक | Shree Samaysar Natak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्री समयसार नाटक  - Shree Samaysar Natak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सूर्यसागरजी महाराज - Suryasagarji Maharaj

Add Infomation AboutSuryasagarji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[২২] कर्ता हैं है १७ ६ अज्ञानीभी अपने अज्ञान भावका कर्ता है पुद्रलकम॑का कता निश्वयते नहीं है १०७ जीवको परद्न्यका कतापनेका हेतु देखकर उपचारत कहा जाता है कि यह काये जीवने किया है १०० मिध्यात्वादिक सामान्य आख््र ओर विशेष गुणस्थान ये बंधके कर्ता ह निश्वयते जव इनका कतौ भोक्ता नहीं १११ जीव ओर आवसे मद्‌ दिखाकर अभद कहनेमे दूषण दिया है ११२ सांख्यमती पुरुष ओर्‌ प्रकृतिको अपरिणाम कते ह उनका निषध कर पुरुष र्‌ पुद्रल्क। परिणामी कटा हं ११३ ज्ञानसे ज्ञानभाव, अज्ञानसे अज्ञानमाव उत्पन्न होता है ११८ द्रव्य-कर्म बांधनका निमित्त अज्ञानी जीव हैं १२२ पुद्ठलका परिणाम जीवसे और जीवका परिणाम ঘুর্ততী अछग है १२४ कम जोचसे बद्धस्पष्ट है कि अवद्धस्पष्ट / इस प्रश्नका उचर निश्चय- व्यवहारे दिया दै {२५ जो नयोंके पक्षते रहित है वह कतुकममावसे रहित समयसार शुद्ध आत्मा है ऐसा कह कर अधिकार पूर्ण किया १२१ पुण्यपापाधिकार । झुभाशुम कमके सभावका वणन १४१ दार्नोंद्दी कम-बंधके कारण हैं १४३ इसलिए दानं कर्मौका निषेध १४३ उसका दृष्टात ओर आगमको साक्षी १४३ मोक्षका कारण ज्ञान है १४६ टृचादिक पलि तो भो ज्ञान बिना मोक्ष नहीं हैं १४७ मोक्ष साधने वालेका स्वरूप कथन १४८ परमाय खद्य मोक्षका कारण कहा है, अन्यका निषेध किया हे १४९ क मोक्षे कारणको घातता हैं, उसका घातना दृष्टान्त द्वारा दिखलाया ই ५ १५० कम आप बन्धस्वरूप ही है १५२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now